SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३५ : उपासना के सर्व-सामान्य सूत्र अणुव्रत और उपासना जितने धर्म-संप्रदाय हैं, उतनी ही उपासना की विधियां हैं। अणुव्रतआंदोलन कोई धर्म-संप्रदाय नहीं है। यह तो धर्म की सर्व-सामान्य भूमिका है। इसलिए इसकी उपासना-विधि भी सर्व-सामान्य है। इसका उपास्य कोई व्यक्ति नहीं है। इसके उपास्य हैं व्रत। वे व्रत, जो जीवन की विशृंखलता के लिए अंकुश का काम करते हैं। अणुव्रती का उपासना मंत्र है-अहमेव मयोपास्यः-मेरे लिए मैं ही उपास्य हूं। इसके उपासना-सूत्र हैं-आत्म-चिंतन, आत्म-निरीक्षण, क्षमायाचना, खाद्य-संयम या उपवास, आलोचना या प्रायश्चित्त। उपासना का अभिप्रेत बुद्धिवादी युग है। चिंतन की कोई कमी नहीं, पर वह चिंतन बहुत करके होता है पदार्थ को समझने के लिए, उसे बदलने के लिए, जबकि होना चाहिए, अपने-आपको समझने के लिए, अपने-आपको बदलने के लिए। जो केवल दूसरों के बारे में सोचता है, वह दूसरों की उपासना करता है, अपनी नहीं। उपासना का क्षेत्र - उपासना का अर्थ सिमट गया है। आज लगभग पूजा और अर्चना ही उपासना बन गई है। उपासना का क्षेत्र धर्मस्थान ही रह गया है। वासना नष्ट करने की उपासना नगण्य-सी है। इसी में से प्रश्न होता है धर्म केवल उपासना का तत्त्व क्यों बना? जबकि जीवन मे वासना का सत्त्व है छना॥ सच्ची उपासना किसी विशिष्ट आत्मा या इष्ट की अर्चना का महत्त्व तभी हो उपासना के सर्व-सामान्य सूत्र - ३२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy