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आर्य कोई जातिविशेष नहीं है। वह तो एक गुणात्मकता का नाम है। इस अपेक्षा से जिसका स्वधर्म यानी आचरण उन्नत है, वह आर्य है। जो लोग यह गुणात्मकता खो चुके हैं, वे आर्य कैसे कहला सकते हैं ? आवश्यकता है, ऊंची और सभ्य कहलानेवाली जातियां अपना आत्मनिरीक्षण करें और गिर रहे चारित्रिक स्तर को ऊंचा उठाकर अपना खोया गौरव प्राप्त करें।
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ज्योति जले: मुक्ति मिले
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