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५ : संयम जीवन का सौंदर्य है
मैं एक सप्ताह से बिहार प्रांत में प्रवास कर रहा हूं। मैं देख रहा हूं कि यहां के जन-जीवन में सहज सादगी है। यह निष्कारण नहीं है। बिहार भगवान महावीर और गौतम बुद्ध का प्रदेश है। मुझे प्रतीत होता है कि ढाई हजार वर्ष बीत जाने के पश्चात भी उनके उपदेशों का असर समाप्त नहीं हुआ है। भले जैन और बौद्ध कहलानेवालों की संख्या यहां कम है, पर विचार, संस्कार और व्यवहार के स्तर पर आज भी बड़ी संख्या में लोग जैन हैं, बौद्ध हैं। संयम का माहात्म्य ___मैं भगवान महावीर की परंपरा का आचार्य हूं। महावीर के समग्र उपदेश का यदि हम एक शब्द में बांधना चाहें तो उसे संयम में बांध सकते हैं। महावीर ने कहा-'एक व्यक्ति प्रतिदिन दस लाख गायों का दान करता है, पर उसके बनिस्बत वह व्यक्ति महान है, जो संयमी है, जबकि वह एक भी गाय का दान नहीं करता।' वस्तुतः संयम जीवन का सौंदर्य है। जो लोग संयममय जीवन जीते हैं, वे सचमुच अत्यंत सौभाग्यशाली हैं। इससे उनके आत्म-विकास की दिशा बन जाती है। इतना ही नहीं, उनका जीवन संसार के लिए भी आत्म-विकास की मूक प्रेरणा बनता है। मैं यहां संयम का कार्यक्रम लेकर आया हूं। अणुव्रत-आंदोलन के नाम से पहचाने जानेवाले इस कार्यक्रम का घोष ही हैं-संयमः खलु जीवनम्संयम ही जीवन है। इतने मात्र से आप समझ सकते हैं कि यह आंदोलन संयम को कितना महत्त्व और बल देता है। इसका अभिप्रेत है कि व्यक्ति-व्यक्ति अपने जीवन को संयम की साधना से भावित करे। यह संयम की साधना उसे महानता की ओर ले जाती है। महावीर के अनुसार व्यक्ति पूज्य नहीं होता, पूज्यत्व संयम में सन्निहित है। साधुसंतों के स्वागत-सम्मान-अभिनंदन की परंपरा का आधार यही तो है। साधु-संत स्वयं संयम का जीवन जीते हैं और जन-जन को संयमाभिमुख
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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