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________________ खेला। इन्हें मान्यता दी, प्रोत्साहन दिया। मैं पूछना चाहता हूं कि धर्म के नाम पर क्या-क्या अन्याय नहीं हुआ। और तो क्या, भारत का विभाजन भी तो धर्म के नाम पर हुआ। यह अवांछनीय स्थिति आज भी बनी हुई है। धर्म के नाम पर जैसी-जैसी गलत प्रवृत्तियां चल रही हैं, उन्हें देखसुनकर कई बार मन में प्रश्न उभरता है कि फिर अधर्म नाम का तत्त्व क्या है, पाप क्या है। धर्म को उपासना तक सीमित बना देना भी धर्म व धर्माधिकारियों के प्रति अनास्था पैदा होने का एक बड़ा कारण बना है। लोग मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा में पूजा, अर्चना, पाठ आदि कर अपनी धार्मिकता की इतिश्री कर लेते हैं, अपने विचार और आचार पवित्र बनाना आवश्यक नहीं समझते। सत्य, प्रामाणिकता, नैतिकता, ईमानदारी, सदाचार आदि धर्म के तत्त्वों को जीवन-व्यवहार से संपृक्त करने की कोई अपेक्षा महसूस नहीं करते। इसलिए उनके जीवन में शोषण, धोखाधड़ी, कालाबाजारी, रिश्वत-जैसी अनेक दुष्प्रवृत्तियां चलती रहती हैं। आश्चर्य है, इन सबके चलते भी उपासना और बाह्य क्रियाकांडों के कारण वे धार्मिक कहलाते हैं! इन तथाकथित धार्मिकों का जीवन-व्यवहार देखकर आज की नई पीढ़ी के लोगों में धर्म के प्रति अनास्था का भाव पैदा होता है तो किसी को विस्मय क्यों होना चाहिए? हां, यदि नहीं होता है तो अवश्य विस्मय करने-जैसी बात है। अणुव्रत-आंदोलन धार्मिक क्षेत्र की विकृतियां दूर कर उसे अपनी सही प्रतिष्ठा देना चाहता है। उसे धर्मस्थानों एवं धर्मग्रंथों की सीमा से बाहर निकालकर जन-जन के जीवन-व्यवहार में मूर्तिमान बनाना चाहता है। मैं धर्म के तथाकथित नेताओं से कहना चाहता हूं, यदि वे अपना नेतृत्व सुरक्षित रखना चाहते हैं तो अपनी सोच और कार्यशैली बदलें। वे स्वयं त्याग और व्रतमय जीवन जिएं तथा अपने अनुयायियों को भी इस दिशा में मोड़ने का प्रयत्न करें। जब तक धर्म को आचरणात्मक रूप प्रदान कर व्यक्ति-व्यक्ति के दैनंदिन जीवन से संपृक्त नहीं किया जाएगा, तब तक पवित्रता और शांति के रूप में उसका वास्तविक फलित सामने नहीं आ सकेगा। ऐसी स्थिति में वह जन-आकर्षण का केंद्र भी नहीं बन सकता। अपेक्षा है, इस बिंदु पर गंभीरता से चिंतन किया जाए। ह्वीलर सीनेट हॉल, पटना, ७ जनवरी १९५९ अणुव्रत-आंदोलन : समय की मांग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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