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मूल्यांकन की दृष्टि बदले
आज के युग की मूल्यांकन-पद्धति बदलनी होगी। आज धर्म से धन विशिष्ट है। नृत्य, संगीत, रूप और सौंदर्य की प्रतिष्ठा है, आचार की नहीं। चरित्रवान होने पर भी अर्थाभाव के कारण व्यक्ति का समाज में स्थान नहीं है। त्याग पीछे है और पूंजी आगे। सदाचारी से घृणा है और अनाचारी का आदर। सादगी का तिरस्कार है और आडंबर के प्रति आकर्षण। ये सब भ्रांतियां मिटानी होंगी। मानवता की पुनः प्रतिष्ठा करनी होगी। अणुव्रत-आंदोलन इस दिशा में एक सक्रिय कदम है। वह सब धर्मों का नवनीत है, सर्वमान्य है। वह सर्वधर्मसद्भाव की बात लेकर आगे बढ़ता है। अणुव्रत पर किसी जाति या धर्म की मुहर नहीं है, किसी समाजविशेष का एकाधिकार नहीं है और व्यक्तिविशेष का प्रभुत्व नहीं है। वह तो मानवमात्र का है।
सबसे बड़ा धर्म क्या है -
-३०५.
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