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है कि राजनीतिज्ञों और तथाकथित समाज-सुधारकों ने ऐसा मान लिया है कि उनके लिए संयम की कोई आवश्यकता नहीं है। जब संयम और अनुशासन घटता है, असंयम और अनुशासनहीनता को खुलकर खेलने का मौका मिलता है, वहां व्यक्ति, समाज या राष्ट्र अर्थसंपन्न होकर भी सुख और शांति से संपन्न नहीं हो सकता। भारत आज अर्थ-समृद्धि का जी तोड़ यत्न कर रहा है, वह इस नए वर्ष के आदि दिन में संयम और अनुशासन की समृद्धि को भी विकसित करने का संकल्प करे। अणुव्रतआंदोलन का घोष-संयम ही जीवन है-जन-जन के लिए जीवन-विकास का महान मंत्र बन सकता है।
संयम और अनुशासन की समृद्धि का संकल्प करें
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