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१२४ : शांति : स्रोत और आधार
मनुष्य अशांत है, परंतु दोष किसे दे? अशांति का स्रष्टा वह स्वयं ही है। अशांति से संत्रस्त वह शांति खोज रहा है। बाह्य पदार्थों में शांति कैसे मिले? शांति का स्रोत तो आत्मा है।
__ आज मनुष्य अकेला नहीं है। एक देश की घटना का प्रभाव सारे विश्व पर पड़ता है। एक वह भी समय था, जब बड़े-बड़े युद्ध हो जाते थे, फिर भी पड़ोसी देशों को सूचना तक नहीं मिल पाती थी। कारण स्पष्ट है-संचार के साधन सुलभ नहीं थे, पर आज एक स्थान की सैनिक क्रांति की सूचना सभी देशों में कुछ ही घंटों में फैल जाती है। सारे विश्व पर उसका प्रभाव पड़ता है। राजनीति में एक देश की शांति का महत्त्व नहीं है। विश्व के साथ उसका संबंध है। विश्व की शांति एक की शांति और एक की अशांति विश्व की अशांति।
शांति के साधन अणुबम, रॉकेट आदि घातक शस्त्र नहीं हैं। उसका साधन अहिंसा है। यह दूसरी बात है कि कौन कहां तक इसे जीवन में स्थान देता है। किसी के न चलने से पथ अपथ नहीं बनता, किसी के न पालने से दया अदया नहीं बनती। वैसे ही किसी के न अपनाने से अहिंसा हिंसा नहीं बन सकती।
अहिंसा विश्व-शांति का एक साधन है। प्रश्न किया जाता है कि अहिंसा सैनिकों में क्या करेगी। प्रतिप्रश्न यह भी तो हो सकता है कि हिंसा आखिर क्या करेगी। हिंसा से हिंसा नहीं मिट सकती, वैर से वैर बढ़ता है। आखिर अहिंसा का आश्रय लेना ही होगा।
अहिंसा का प्रयोग व्यक्ति तक ही सीमित न रहे। समाज और राष्ट्र में उसका प्रयोग होना चाहिए। जेल के अधिकारी अनुभव करते हैं कि अपराधी का फांसी या अन्य दंडों से सुधार नहीं होगा। उसके लिए अपेक्षा है कि उसका हृदय-परिवर्तन किया जाए। अन्य क्षेत्रों में भी इसका • २९६ -- -
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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