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कि वास्तव में शास्त्रों की वे बातें सही थीं। हम ही उन्हें नहीं समझ पाए थे। शब्द के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि ज्योंही हम शब्द बोलते हैं, वे सारे लोक में फैल जाते हैं। इस संदर्भ में पहले कुछ लोगों का ख्याल था कि यह तो असंभव बात है, पर आज विज्ञान की खोज ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शब्द की गति अति तीव्र होती है। हमारे बोलने के साथ ही उसकी तरंगें चारों ओर फैल जाती हैं। यद्यपि इसमें भी अभी तक काफी खोज की अपेक्षा है, पर इतना तो सुस्पष्ट ही है कि विज्ञान शास्त्रों के काफी नजदीक आ गया है। वनस्पति के बारे में भी तो ऐसी ही बात है। बहुत-से लोग कहा करते थे कि क्या वनस्पति में भी जीव हो सकते हैं, पर जगदीशचंद्र वसु ने यह सिद्ध कर दिया के वनस्पति में भी जीव है। इसी प्रकार शास्त्रों में और भी अनेक बातें हो सकती हैं, जो आज असंगत-सी लगती हों, पर धैर्य के साथ अगर खोज जारी रखी जाए तो मेरा विश्वास है कि सब समझ में आने लगेंगी।
कुछ लोग विज्ञान पर ही विश्वास करते हैं, शास्त्रों पर विश्वास नहीं करते। इस बारे में मेरा चिंतन यह है कि शास्त्रों पर उन्हें विश्वास हो या न भी हो, विज्ञान पर तो विश्वास हो ही नहीं सकता, क्योंकि विज्ञान तो स्वयं एक प्रयोग है। प्रयोग हमारे सामने होता है। वह पूर्ण ही हो, ऐसा एकांततः नहीं कहा जा सकता। अतः जो एक प्रयोग ही है और पूर्ण भी नहीं है, उस पर विश्वास हो ही कैसे सकता है? विश्वास तो उस पर किया जाता है, जो हमारे सामने नहीं होता। मैं मानता हूं कि विज्ञान ने बड़ी-बड़ी सफलताएं प्राप्त की हैं, पर उसे अभी तक बहुत-कुछ प्राप्त करना है। मैं समझता हूं, जब वह उसे प्राप्त कर लेगा, तब उसमें और शास्त्रों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं रहेगा।
श्रद्धा और तर्क
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