SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राष्ट्रपति दूसरे देश के राष्ट्रपति के साथ, एक देश का विदेश मंत्री दूसरे देशों के विदेश मंत्रियों के साथ तथा एक देश का राजदूत दूसरे देशों के राजदूतों के साथ वर्ष-भर में ज्ञात-अज्ञात भूलों के लिए क्षमा-याचना करे और उनकी भूलें भूले। उस दिन जन-जन के मुख पर यह घोष हो-व्यक्ति-व्यक्ति में मैत्री हो, राष्ट्र-राष्ट्र में मैत्री हो, शीत युद्ध शांत हो। विश्व-शांति और विश्व-मैत्री की दिशा में यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, पर यह प्रयोग विरोध की भाषा में ही सोचने व बोलनेवाले जनमानस को अवश्य एक बार झंकृत करता है कि विरोधी को भी मित्र की दृष्टि से देखना चाहिए। भारतवर्ष में विगत तीन वर्षों से यह प्रयोग चलाया जा रहा है। अणुव्रत-आंदोलन जाति, देश व धर्म की बिना किसी परिधि के भारतवर्ष में तथा दूसरे देशों में भी नैतिक जाग्रति का कार्य कर रहा है। वह चाहता है कि मानव-जीवन के हर पहलू में ऐसी मर्यादाएं आएं, जिन्हें हृदय से स्वीकार कर मनुष्य विवेक-जाग्रति व आत्म-शुद्धि का पथिक बन सके। गांवों व नगरों में बड़ी सभाएं हों, विचार-प्रसार के द्वारा सामाजिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मैत्री का वातावरण बनाया जाए। ___अणुव्रत-आंदोलन विद्यार्थी, मजदूर, किसान, व्यापारी, कर्मचारी आदि सभी वर्गों के लिए जिस प्रकार पृथक-पृथक मर्यादाएं प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार के संदर्भ में भी वह निम्नांकित पांच मर्यादाएं प्रस्तुत करता है१. कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर न तो आक्रमण करे और न आक्रमणकारी को सहायता दे। २. कोई भी राष्ट्र अणु-अस्त्रों का निर्माण, परीक्षण एवं प्रयोग न करे। ३. कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की अंतरंग नीति में हस्तक्षेप न करे। ४. कोई भी राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विधि-विधानों का उल्लंघन न करे। ५. कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र को अपने अधीन न रखे। मैं चाहता हूं, अंतरराष्ट्रीय एकता के इन पांच अणुव्रतों को अमेरिका, रूस प्रभृति सभी देश एक राष्ट्रीय नीति के रूप में स्वीकार करें। विश्वशांति की दिशा में यह एक सुदृढ़ चरण-विन्यास होगा। व्यापक मैत्री का वातावरण निर्मित हो -- २९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy