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१२१ : व्यापक मैत्री का वातावरण निर्मित हो
विश्व के दो बड़े राजनीतिक व्यक्तियों का यह मिलन इस युग की एक ऐतिहासिक घटना होगी । आणविक अस्त्रों की विभीषिकाओं से संत्रस्त संसार इस मिलन - प्रसंग को सुदीर्घ विश्व शांति की अपेक्षा लिए देख रहा है। जाति, धर्म व राष्ट्र की अपेक्षा में मानव-जाति के सार्वभौम हित सर्वोपरि हैं। चिरस्थायिनी विश्व शांति का प्रादुर्भाव हो सकता है, बशर्ते कि अवगणना न हो। आज हिंदुस्तान व पाकिस्तान के बीच कश्मीर की समस्या है, साम्यवादी चीन व राष्ट्रवादी चीन के बीच फारमोसा की समस्या है, अमेरिका व रूस के बीच वर्लिन की समस्या है । ऐसी और भी अनेक समस्याएं अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर हैं और आए दिन नई भी खड़ी होती रहती हैं। ये समस्याएं न सुलझें व इनके सुलझने में विलंब हो तो प्रत्येक देश के निजी हितों में विरोधाभास होगा, पर युद्ध के द्वारा इन समस्याओं को सुलझाने में सभ्यता, संस्कृति व मानवता के साथ समग्र विश्व विनाश के खतरे तक पहुंच सकता है। अमेरिका और रूस- इन दो देशों की मैत्री ये संभावित स्थितियां बहुत दूर तक टाल सकती है और निरंतर चलनेवाले शीतयुद्ध से उत्पन्न भय और तनाव वातावरण सुधार सकती है। आशा है, इस मिलन - प्रसंग से दोनों देश मैत्री की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
अणुव्रत आंदोलन अंतरराष्ट्रीय तनाव कम करने और मानव-मानव के मन में मैत्री का चिंतन जाग्रत करने के लिए एक योजना प्रस्तुत करता है। उसका हार्द है, हर वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह में रविवार के दिन नए वर्ष के उपलक्ष्य में सभी राष्ट्रों में विराट पैमाने पर एक मैत्री - दिवस मनाया जाए। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ, एक देश का प्रधानमंत्री दूसरे देश के प्रधानमंत्री से साथ, एक देश का
*श्री आइजनहावर और श्री निकिता ख्रुश्चेव के मिलन- प्रसंग पर प्रदत्त संदेश |
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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