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११९ : अहिंसा-दिवस का अभिप्रेत*
यह विश्व-इतिहास का एक अनूठा उदाहरण है कि शक्तिशाली राष्ट्रों के कर्णधार निःशस्त्रीकरण का प्रस्ताव करें। शस्त्र-बल के बिना भला राजसत्ता का अस्तित्व ही क्या? पर स्थिति कुछ भिन्न है। शस्त्र इतने बढ़ गए हैं कि आज वे राजसत्ता के प्रहरी हैं और कल उसी के लिए उनके श्मशान बन जाने की संभावना प्रस्तुत है।
हिंसा के साधन चरम सीमा तक पहुंचे हैं, तब उनको समूल उखाड़ फेंकने की बात उठी है। निकिता खुश्चेव का प्रस्ताव अभी-अभी लोगों ने सुना ही है। यह अहिंसा की प्रतिध्वनि नहीं है। इसमें आपसी भय बोल रहा है। अहिंसा का आनंद तब मिलता है, जब उसका स्वतंत्र मूल्य समझ में आ जाए। परिस्थिति की बाध्यता के बिना हिंसा त्यागने में जो प्रकाश है, वह बाध्यता की स्थिति में नहीं है, और यह भी तथ्य है कि हिंसा के साधनों और उत्तेजना देनेवाली परिस्थितियां समाप्त किए बिना अहिंसा का विस्तार नहीं होता।
सामाजिक जीवन अहिंसा के अनुकूल हो-उसमें संग्रह, विलास और भोगवृत्ति कम हो, सामाजिक परंपराएं आर्थिक दबाव से झुकी हुई न हों तो हिंसा को उग्र होने का अवसर नहीं मिलता।
कहीं आर्थिक वैषम्य कम हुआ है तो शस्त्रीकरण बढ़ा है, कहीं आर्थिक प्रचुरता हुई है तो भोग-विलास बढ़ा है। ये दोनों ही अहिंसा के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं।
__ अणुव्रत-आंदोलन का लक्ष्य है कि ऐसी परिस्थिति का निर्माण हो, जिससे न भोग-वृत्ति विस्तार पाए और न शस्त्रों की बाढ़ आए, पर जनता का कदम अहिंसा की ओर आगे बढ़े।
*अणुव्रत-अहिंसा-दिवस के उपलक्ष्य में प्रदत्त संदेश।
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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