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________________ ११५ : मानव सुखी कब इंसान से गलती होती है, लेकिन वह अपने को हीन, दीन और क्षीण न समझे । तत्त्वतः कोई भी मनुष्य हीन नहीं होता । हीनता है-उसकी बुराइयां, दुष्प्रवृत्तियां। मैं पूछना चाहता हूं, जब उसके मुंह एक और हाथ दो हैं, तब वह हीन क्यों है । जब उसकी बुराइयां समाप्त हो जाएंगी, वह परमात्मा के समकक्ष बन जाएगा। वास्तव में मनुष्य तो परमात्मा की ही शक्ल है। परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह गर्वोन्मत्त हो जाए। अपने-आपको बड़ा मानना भी उतना ही खतरनाक है, जितना अपने-आपको हीन दीन- क्षीण मानना । यह कितनी दुःखद बात है कि मनुष्य दूसरों की गलतियां देखने के लिए सहस्राक्ष बन जाता है और अपनी कमियों के लिए प्रकृति से प्राप्त दो आंखों का भी पूरा उपयोग नहीं करता, बल्कि उन्हें मूंद लेता है। आप निश्चित मानें, केवल गंगा में स्नान करने, भगवान के पैरों पर जा फूल चढ़ाने और मस्जिद में जा नमाज पढ़ने से पापों का नाश नहीं होगा। उसके लिए तो आपको अपने द्वारा किए गए अपराधा सच्चे हृदय से मंजूर करना आवश्यक है। इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि भविष्य में उन दुष्प्रवृत्तियों की आवृत्ति न हो । मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहलाता है। वह सुख चाहता है। अपने लिए, परिवार के लिए और बाल-बच्चों के लिए। इसके लिए वह डाका डालता है, लूट-खसोट करता है, और हत्याएं आदि करता है, लेकिन यह एक शाश्वत तथ्य है कि दूसरों को दुःख देकर कोई भी व्यक्ति स्वयं सुखी नहीं बन सकता। यह तो प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से दुःख को ही आमंत्रण है। सुखी बनने के लिए दूसरों को दुःख देना छोड़ना होगा, दूसरों का सुख लूटना छोड़ना होगा । मानव सुखी क Jain Education International For Private & Personal Use Only २७७• www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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