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११४ : अणुव्रती बनने का अधिकारी
आज के बुद्धिवादी वर्ग को धर्म के नाम से एक चिढ़-सी है। धर्म में उसे कोई रस नहीं है। कहा जाता है कि इसका कारण आधुनिक शिक्षा, विज्ञान व भौतिक प्रगति है। पर मैं इन्हें प्रमुख कारण नहीं मानता। मेरी दृष्टि में इसका कारण वे तथाकथित धार्मिक हैं, जिन्होंने धर्म को रूढ़ि, बाह्याचार, दंभ और स्वार्थ-साधना के रूप में प्रयुक्त किया। इस कारण धर्म का सत्य स्वरूप नीचे दब गया और उसके नाम पर अधर्म उभरने लगा। तब भला उसमें निष्ठा कैसे टिकती? आज पहली आवश्यकता है कि धर्म का सही रूप लोगों के समक्ष रखा जाए। किसी को गलतफहमी न हो, इसलिए एक बात स्पष्ट कर दूं। धर्म से मेरा आशय किसी संप्रदायविशेष से नहीं है, बल्कि धर्म के सच्चारित्र्यमूलक मौलिक आदर्शों से है। देश में लाखों साधु-संन्यासी हैं, धर्म-संस्थान हैं, पर धर्म का सही रूप लोगों के सामने नहीं आ रहा है। उन पर यह उत्तरदायित्व है कि वे व्यापक दृष्टिकोण लिए धर्म का सही स्वरूप लोगों के सामने रखें। राष्ट्र का नैतिक धरातल उन्नत बनाने के लिए यत्नशील हों।
अणुव्रत-आंदोलन जन-जन के चारित्रिक जागरण का उद्देश्य सामने रखकर चलनेवाला एक अभियान है। धर्म के अहिंसा, सत्य आदि उन मौलिक आदर्शों का इसमें समावेश किया गया है, जो क्या जैन, क्या वैदिक, क्या बौद्ध, क्या मुसलमान, सबको समान रूप से मान्य हैं, सबके लिए समान रूप से उपयोगी हैं। वह ग्रंथों में रहे धर्म-तत्त्व जीवन में व्याप्त देखना चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी संप्रदाय, जाति व वर्ग का क्यों न हो, अणुव्रती बनने का अधिकारी है। शर्त एक ही है कि उसकी जीवन-शुद्धि में निष्ठा हो।
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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