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३ : वर्तमान जीवन को स्वर्ग बनाने की प्रक्रिया
भारतीय धर्मों और दर्शनों में स्वर्ग, नरक, आत्मा, परमात्मा, मोक्ष आदि की विस्तृत चर्चा हुई है। मैं इसे अहेतुक, अनुपयोगी और अनावश्यक नहीं मानता। इसकी उपयोगिता और आवश्यकता स्वीकार करता हूं, तथापि अभी आप लोगों को इस चर्चा में नहीं ले जाना चाहूंगा। स्वर्ग कहां है, वह किसे मिलता है, कैसे मिलता है-इन बातों की चर्चा करने के बजाय मैं यह बताना आवश्यक और महत्त्वपूर्ण समझता हूं कि अपने वर्तमान को स्वर्ग कैसे बनाया जाए, उसका स्वरूप कैसा हो। यदि आपका आचार पवित्र है, व्यवहार शुद्ध है, विचार सात्त्विक हैं, दुष्प्रवृत्तियां हावी और प्रभावी नहीं हैं तो आप अपने जीवन में अनिर्वचनीय सुख और आनंद का अनुभव करेंगे। आपके लिए यह जीवन स्वर्ग ही होगा। शुद्धाचार और सात्त्विक विचार की भीत्ति पर हमने एक कार्यक्रम चला रखा है। अणुव्रत-आंदोलन के नाम से पहचाने जानेवाले इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही है कि जन-जन की जीवनशैली स्वस्थ बने, धर्म के मौलिक तत्त्व उसके जीवन में मूर्त बनें, वह अपने वर्तमान जीवन में शांति और आनंद का अनुभव करे। हमारी इस धरती पर मैं जिस स्वर्ग की कल्पना करता हूं, उसे साकार करने की प्रक्रिया यह कार्यक्रम ही है। इस कार्यक्रम की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जाति, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय, लिंग, भाषा आदि की कोई बाधा नहीं है। कोई भी व्यक्ति, जिसका शुद्धाचार और उच्च विचार की जीवनशैली में विश्वास है, इसे अपनाकर अपना जीवन स्वर्ग बना सकता है। क्या आप लोग अपना जीवन स्वर्ग, बनाना नहीं चाहेंगे? अवश्य चाहेंगे। इस चाह की राह यही है कि आप संकल्प के स्तर पर अणुव्रत-आंदोलन की आचार-संहिता स्वीकार करें। निश्चय ही आपको अवाच्य आत्म-तोष मिलेगा। शांतिनाथ जिन मंदिर, आरा ४ जनवरी १९५९
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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