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________________ सिद्धांत के माध्यम से बहुत सुंदर ढंग से सुलझाए जा सकते हैं। इसी लिए बड़े-बड़े विद्वान इससे अत्यंत प्रभावित हैं, इसके प्रति प्रणत हैं, पर कैसी बात है कि जैन लोग इस सिद्धांत के प्रति उदासीन हैं ! बहुत सही तो यह है कि वे इसका सही-सही मूल्यांकन ही नहीं कर रहे हैं, अन्यथा कोई कारण नहीं कि वे इसे अपने जीवन-व्यवहार में स्थान न देते। यदि वे इसका सही-सही मूल्यांकन करके इसे उचित महत्त्व देते तो आज उनके जीवन की धारा कुछ भिन्न ही होती। वे छोटे-छोटे नाकुछ विवादों में उलझते हुए दिखाई नहीं देते। क्या यह जैनों के लिए गंभीर चिंतन की बात नहीं है? जैन लोग अब भी अपने जीवन को एक नया मोड़ दें। वे स्याद्वाद के इस महान सिद्धांत के प्रयोक्ता बनें। यह प्रयोग निश्चय ही उनके जीवन को एक नया निखार देनेवाला सिद्ध होगा, वे महावीर के सच्चे अनुयायी कहलाने के अधिकारी बन सकेंगे। मतभेद मनभेद न बने इस सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में जब मैं जैनों के विभिन्न संप्रदायों की मान्यताएं एवं सिद्धांत देखता हूं तो मुझे बहुत स्पष्टतया ऐसा अनुभव होता है कि परस्पर मौलिक मतभेद की मात्रा बहुत ही कम है, अभेद ही ज्यादा है। वैसे जैनों के विभिन्न संप्रदायों में ही क्यों, विभिन्न धर्मों के संदर्भ में भी तो यही बात है। परस्पर मतभेद की बातें बहुत थोड़ी हैं। इस संदर्भ में एक बात और है। कोई मतभेद है तो वह मतभेद के धरातल तक ही रहे, उसे परस्पर विचार-विनिमय तक ही सीमित रखें। उसे मनभेद का रूप न दें, उसके कारण विवादास्पद स्थितियां पैदा न करें। स्याद्वाद का सिद्धांत सामने रखकर धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण निर्मित करें। यह जैन-शासन की बहुत बड़ी सेवा हो सकेगी। जैन-सिद्धांत भवन, आरा ४ जनवरी १९५९ जैनों का कर्तव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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