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२ : जैनों का कर्तव्य
एक अरसा से हम बिहार प्रांत में विहरण कर रहे हैं। बिहार भगवान महावीर की मुख्य कर्म-भूमि रहा है। पर कैसी स्थिति है कि जिस बिहार भूमि को महावीर ने अपने उपदेशों से सींच-सींचकर सरसब्ज बनाया था, आज वह मरुस्थल-सी लगती है! उनके द्वारा प्रचारित तत्त्व एवं दर्शन के अनुयायी यहां इने-गिने ही देखने में आ रहे हैं। इसके विपरीत मरुस्थल कहलानेवाला राजस्थान आज महावीर-वाणी के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सरसब्ज बन रहा है। जैन-धर्म का वहां व्यापक प्रभाव और फैलाव है। उसकी ज्योति वहां के भूले-भटके लोगों को राह दिखाने का महनीय कार्य कर रही है। इसके बावजूद बिहार की इस यात्रा से मैं अत्यंत आह्लादित हूं। इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है। महावीर के अनुयायियों की क्षीण संख्या के बावजूद यहां के कण-कण में महावीर-वाणी की गूंज है। उस गूंज का मैं बहुत स्पष्ट रूप से अनुभव कर रहा हूं। हमारा, आपका और सबका यह पुनीत कर्तव्य है कि सार्वजनीन, सार्वदेशिक और सार्वकालिक हित की दृष्टि से महावीर द्वारा उच्चारित और प्रचारित वाणी की प्राप्ति की दृष्टि से सतत प्रयत्नशील रहें, जागरूक रहें। ___ मैं मानता हूं, यह महावीर-वाणी एक अमूल्य निधि है। इसे प्राप्त करके जैन लोगों को अपने-आपमें संपन्नता की अनुभूति करनी चाहिए। स्याद्वाद का मूल्य
जैनों के पास स्याद्वाद जैसा महान समन्वयकारी सिद्धांत है, इसका उन्हें गौरव होना चाहिए। यह एक ऐसा सिद्धांत है, जो द्वैतवादी और अद्वैतवादी दोनों को एक कर सकता है, ईश्वरकर्तृत्ववादी और अनिश्वरवादी में परस्पर सामंजस्य बिठा सकता है, आस्तिक और नास्तिक का भेद पाट सकता है। मैं मानता हूं कि व्यक्तिगत स्तर से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उभरनेवाले विभिन्न विवाद इस
ज्योति जले : मुक्ति मिले
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