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११३ : आज का युग और धर्म
धर्म और धर्मस्थान नंदनवन हैं
कहा जाता है कि देवताओं को शांति की आवश्यकता होती है तो वे नंदनवन चले जाते हैं। वहां का वातावरण उन्हें शांति प्रदान करता है, आनंद-विभोर बना देता है। निश्चय ही वह नंदनवन हमारे प्रत्यक्ष नहीं है, पर धर्मरूपी नंदनवन तो बिलकुल प्रत्यक्ष है। उसकी महिमा गाते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है, बल्कि धार्मिक व्यक्ति भी मंगल है। इसी प्रकार धर्म को अजर, अमर और निश्चल बताया गया है ।
बंधुओ ! जिस धर्म को शास्त्रों में इतना महिमामंडित किया गया है, वह निस्संदेह नंदनवन है। इस नंदनवन में रमण करनेवाला अनिर्वचनीय सुख और शांति का अनुभव करता है। उसका हृदय आनंद से ओतप्रोत बन जाता है।
धर्म ही क्यों, धर्मस्थान भी तो नंदनवन ही है, पर इस संदर्भ में एक बात समझने की है। नंदनवन मात्र वह धर्मस्थान है, जहां वास्तव में ही धार्मिक क्रियाएं चलती हैं। तथाकथित धर्मस्थान नंदनवन कदापि नहीं हो सकते, जहां बाहर तो मोटा-सा धर्मस्थान का साईन बोर्ड लगा रहता हो और अंदर लड़ाई-झगड़ा और खून-खराबा के रूप में अधर्म चलता हो ।
विवेक ही धर्म है
प्रश्न है, धर्म का स्वरूप क्या है | आगमों में कहा गया हैविवेगे धम्ममाहिए । यद्यपि यह बहुत छोटा-सा वाक्य है। मात्र आठ ही अक्षर हैं, पर इस छोटे-से वाक्य में, इन आठ अक्षरों में धर्म का सार समाया हुआ है। विवेक ही धर्म है। धर्म की इतनी सीधी और छोटी कसौटी और क्या होगी ! जहां विवेक है, वहां धर्म है। जहां विवेक नहीं
आज का युग और धर्म
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