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क्या वे नैतिकता और ईमानदारी का पालन करते हैं? स्थिति तो यह है कि आज व्यापक स्तर पर मिलावट का धंधा चलता है। और तो और, खाद्य पदार्थ भी शुद्ध उपलब्ध नहीं होते। यहां तक कि औषधि जैसी वस्तु भी इस मिलावट से अछूती नहीं है। ऐसी स्थिति में जनता के स्वास्थ्य एवं समुचित चिकित्सा की क्या आशा की जा सकती है ! व्यापारी लोग इस बात पर गंभीरता से चिंतन करें कि क्या अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार से उपार्जित धन सदा उनका साथ निभाएगा। मैं पूछना चाहता हूं कि रोगजन्य स्थूलता की अपेक्षा क्या स्वाभाविक कृशता श्रेष्ठ नहीं है। आप बताएं कि अनैतिकता असत्य, भ्रष्टाचार से उपार्जित धन से पूंजीपति बनने की अपेक्षा क्या नैतिकता, प्रामाणिकता, सत्य आदि की टेक रखनेवाला गरीब ज्यादा अच्छा नहीं है।
मेरी दृष्टि में आज सबसे बड़ी हानि इस बात की हुई है कि व्यापारी वर्ग का नैतिकता और प्रामाणिकता से व्यापार चलाने के प्रति विश्वास समाप्त हो रहा है। सत्य के प्रति उसकी आस्था डगमगा गई है। अपेक्षा है, व्यापारी लोग सत्य के प्रति दृढ़निष्ठ बनकर व्यवहार में उसका पूरा-पूरा प्रयोग करें। इस प्रयोग से प्रारंभ में भले ही व्यक्ति को कुछ कष्ट उठाना पड़े, पर इतना सुनिश्चित है कि अंततोगत्वा परिणाम मधुर और सुंदर ही आता है। अणुव्रत आंदोलन के अंतर्गत व्यापारी वर्ग के लिए कुछ नियम हैं। वे नियम स्वीकार कर व्यापारी लोग जीवन को सही दिशा दे सकते हैं।
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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