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११२ : व्यापारी सत्य के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ बनें
देश की आर्थिक समृद्धि का एक प्रमुख अंग व्यापारी-वर्ग है। कहना चाहिए कि एक दृष्टि से व्यापारी-वर्ग देश का हृदय है। उच्च शिक्षा प्राप्त न करने पर भी व्यापारियों के पास उल्लेखनीय बुद्धिवैभव है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि व्यापार के बल पर अंग्रजों ने भारतवर्ष पर अपना प्रभुत्व जमाया था। अनेक कमजोर देशों ने व्यापार के द्वारा अपना आर्थिक विकास किया, इतिहास इस बात का भी गवाह है। ऐसी किंवदंती है कि रावण का राज्य योग्य व्यापारी सलाहकार न होने के कारण ही गया। मैं नहीं जानता कि यह बात कितनी यथार्थ है, पर यह निर्विवाद है कि व्यावहारिक बुद्धिमत्ता में व्यापारी-वर्ग अग्रगण्य है।
आज व्यापारी-वर्ग बदनाम है। इसका कारण? कारण यह कि उसका एकमात्र लक्ष्य अर्थार्जन बन गया है। व्यापारी लोग धर्म, नीति, प्रामाणिकता, ईमानदारी और स्वास्थ्य की उपेक्षा कर सकते हैं, पर अर्थ की नहीं। यदि पाताल में भी अर्थलाभ होने की संभावना हो तो वे सभी प्रकार की कठिनाइयां एवं कष्ट झेलकर वहां भी जाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसा प्रतिभासित होता है कि अर्थ-संग्रह का भूत प्रतिपल उन पर सवार रहता है। यही तो कारण है कि वे पारिवारिक ग्राहक एवं सगे भाई के साथ भी धोखाधड़ी कर लेते हैं। सरकार को धोखा देना तो उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। कानून बनते ही उसकी पकड़ में न आने का रास्ता खोज निकालते हैं। आम तौर पर राज्यकर्मचारियों के बारे में यह शिकायत सुनने को मिलती है कि वे रिश्वत लेते हैं, पर मैं व्यापारियों से कहना चाहता हूं कि वे अपना
आत्मालोचन करें। वे राजकर्मचारियों पर जितना दोष मढ़ते हैं, उतने ही दोषी क्या वे स्वयं नहीं हैं? क्या वे अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए रिश्वत नहीं देते हैं? क्या वे अपना व्यापार प्रामाणिकता से चलाते हैं?
व्यापारी सत्य के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ बनें
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