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________________ संप्रदाय का व्यक्ति इस अभियान के साथ जुड़ सकता है। चरित्र-निर्माण के इस अभियान के माध्यम से हम जन-जन के जीवन-उत्थान के लिए प्रयत्नशील हैं। मुझे इस बात का तोष है कि जनता इस कार्यक्रम में अच्छी अभिरुचि ले रही है। कुछ वर्षों में ही इस आंदोलन ने अपनी एक पहचान बनाई है। आपसे अपेक्षा है कि आप भी इस अभियान के साथ जुड़ें। इसकी आचार-संहिता संकल्प के स्तर पर स्वीकार करें, ताकि आपका चारित्रिक पक्ष उज्ज्वल बने, आपके जीवन-उत्थान का मार्ग प्रशस्त बने। त्याग को सर्वोच्च मूल्य मिले प्रश्न किया जा सकता है कि राष्ट्र का चारित्रिक पतन क्यों हुआ। यों तो इसके उत्तर में अनेक बातें बताई जा सकती हैं, पर सबसे बड़ा कारण है-धन को अतिरिक्त महत्त्व मिलना। आप देखें, आज सर्वत्र धन की पूछ है। जिसके पास प्रचुर धन है, उसे ऊंचा आसन मिलता है, आदर और सम्मान मिलता है। तब भला उसे अतिरिक्त महत्त्व क्यों नहीं मिलेगा? क्यों नहीं उसके प्रति एक विशेष आकर्षण का भाव पैदा होगा? और जिस चीज के प्रति व्यक्ति के मन में विशेष आकर्षण का भाव होता है, उसे वह येन केन प्रकारेण प्राप्त करना चाहता है। गलत-सेगलत हथकंडे अपनाने में भी उसे कोई संकोच नहीं होता। यह विकृत मनोवृत्ति जब तक नहीं मिटेगी, तब तक जन-जीवन ऊंचा कैसे उठेगा? हम न भूलें कि भारत की एक विशेष संस्कृति रही है। यहां वैभव सदैव त्याग के चरणों में लुटता रहा है। राजा-महाराजा और चक्रवर्ती सम्राट अकिंचन संतों की चरण-धूलि मस्तक पर लगाकर धन्यता की अनुभूति करते रहे हैं। तात्पर्य यह कि भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान त्याग को प्राप्त रहा है, पर यह कितने खेद की बात है कि उसी भारत में आज यह सांस्कृतिक मूल्य भुलाया जा रहा है! त्याग के स्थान पर धनवैभव को प्रतिष्ठित करने की भयंकर भूल हो रही है! हमारा कर्तव्य है कि हम त्याग का मूल्य पुनः स्थापित करें। तभी यह राष्ट्र अपना सही गौरव प्राप्त कर सकेगा। डालमिया नगर १८ दिसंबर १९५९ .२६६ - - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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