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११० : जीवन-उत्थान का आधार
चरित्र-निर्माण क्यों
मेरे कानों से जब-तब इस आशय की शब्दावली टकराती है कि आज देश में अनाज की कमी है, स्टील की कमी है, अन्यान्य अनेक प्रकार की आवश्यक वस्तुओं की कमी है। मैं इसका प्रतिवाद नहीं करता, पर इतना अवश्य कहता हूं कि आज देश में सबसे बड़ी कमी अच्छे आदमियों की है। यदि यह कमी पूरी न हुई तो कुछ भी बनने का नहीं है, भले देश को सोने का भी क्यों न बना दिया जाए। इसमें किसी को भी किंचित भी संदेह करने की गुंजाइश नहीं कि जिस योजना को क्रियान्वित करने में सामान्यतः अरबों रुपयों का बजट होता है, वही योजना यदि ईमानदार, नैतिक एवं प्रामाणिक लोगों द्वारा क्रियान्वित होती है तो वह करोड़ों में पूरी हो सकती है, पर कठिनाई तो यही है कि ईमानदार, नैतिक एवं प्रामाणिक व्यक्तियों के हाथों से काम बहुत कम कराया जाता है। इसका ही यह परिणाम है कि करोड़ों के काम में करोड़ों का गबन होता है, धोखा होता है। इस कारण कोई भी योजना अपेक्षित रूप में सफल नहीं हो पाती। मैं मानता हूं, आज जितना बल दूसरी-दूसरी बातों के विकास पर दिया जा रहा है, उतना यदि चरित्र-निर्माण पर दिया जाए तो बहुत उल्लेखनीय कार्य हो सकता है। आप यह सचाई हृदयंगम करें कि चरित्र-निर्माण जीवन-उत्थान का मूल है। मूल ही नहीं तो पत्ते, फूल और फल कहां से आएंगे? कैसे आएंगे? यदि चरित्र-निर्माण पर ध्यान केंद्रित नहीं होगा, तो जीवनउत्थान कभी संभावित नहीं है। अणुव्रत-आंदोलन : चरित्र-निर्माण का अभियान
अणुव्रत-आंदोलन की चर्चा अभी आपने सुनी। यह चरित्र-निर्माण का एक सार्वजनिक व्यापक अभियान है। किसी जाति, वर्ण, वर्ग और जीवन-उत्थान का आधार
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