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मैं मानता हूं, ऐसा धर्म ही संसार के लिए त्राण बन सकता है। अणुव्रत धर्म का यही स्वरूप जन- जनव्यापी बनाना चाहता है। आवश्यकता है, लोग धर्म का शुद्ध स्वरूप समझकर उसे जीवनगत बनाएं। निश्चय ही उनके जीवन की सार्थकता प्रकट होगी ।
गया
१५ दिसंबर १९५९
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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