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________________ १०७ : चरित्र-शुद्धि का अभियान आगे बढ़ाएं कलकत्ते का लगभग साढ़े आठ मास का प्रवास संपन्न कर अब मैं कल यहां से विदा हो रहा हूं। यहां मेरा शानदार स्वागत हुआ तो विरोध भी हुआ, पर यह कोई नई बात नहीं हैं। मैं जहां भी जाता हूं, ये दोनों प्रकार की स्थितियां लगभग सामने आती हैं। चिंतन के क्षणों में मैं कई बार सोचता हूं कि इसका मूल कारण क्या है। तत्काल एक समाधान मिलता है कि जब तक व्यक्ति वीतराग/आप्त नहीं बन जाता, तब तक ये दोनों स्थितियां उसके सामने बनी रहती हैं, ताकि प्रशंसा सुनकर व्यक्ति को गर्वित होने का मौका न मिले और वह अपने-आपको संतुलित बनाया रख सके। मैं अनुभव करता हूं कि विरोध ने सचमुच मुझे संतुलित बने रहने में सहयोग किया है। इस दृष्टि से मैं विरोध को स्वागतार्ह मानता हूं, पर मुझे इस बात का खेद है कि कलकत्ते में मुझे वह विरोध नहीं मिला, जिस विरोध का स्वागत किया जाना चाहिए। इतने बड़े नगर में इतने निम्नस्तर का विरोध देखकर मुझे आश्चर्य है और वह भी अपने विचारों की उपज-व्यक्तिगत भावना के प्रतिफलन की दृष्टि से। ___कलकत्ते में हुए विरोध में तीन तरह के लोग थे। प्रथम कोटि के वे लोग, जो अपने-आपको धार्मिक तो मानते हैं, किंतु धर्म-तत्त्व का उन्हें वास्तविक ज्ञान ही नहीं है। दूसरी कोटि के वे लोग, जिनका साधु, संन्यासी, संयम आदि के नाम से विरोध है। तीसरी कोटि के वे लोग, जो चाहते थे कि शोषण, भ्रष्टाचार, मिलावट आदि अनैतिक प्रवृत्तियों पर आधारित उनका अस्तित्व बना रहे। वे मेरी यह आवाज सुनकर बेचैन हो उठे कि भ्रष्टाचार मत करो, मिलावट मत करो, शोषण से अर्थार्जन मत करो"उन्होंने सोचा कि चरित्र-शुद्धि की बुलंद आवाज ने अगर जन-जन के हृदय में अपना स्थान बना लिया तो हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अतः उन्होंने चिंतन किया कि हम इस प्रकार विरोध करें कि न तो रहे बांस, न बजे बांसुरी। इस विरोध के द्वारा हमें धैर्य से .२५८ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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