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१०६ : महिलाएं अपनी शक्ति पहचानें*
__आज प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समाज और प्रत्येक राष्ट्र यह चाहता है कि वह विकास करे, निर्माण की दिशा में आगे बढ़े। इस लक्ष्य से यत्र-तत्र अनेक उपक्रम चल भी रहे हैं। इस संदर्भ में मेरा चिंतन यह है कि वही विकास और निर्माण श्रेयस्कर है, जिसमें आत्मा और जीवन का विकास होता हो, निर्माण होता हो। इस दिशा में आगे बढ़ने में पुरुष और महिला का कोई भेद नहीं होना चाहिए। महिलाओं को आत्म-विकास और जीवन-निर्माण के क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं रहना चाहिए।
मैं देख रहा हूं, आज महिला समाज जाग्रति की दिशा में करवट ले रहा है। प्रगति की विभिन्न राहों पर महिलाएं चरणन्यास करने के लिए कटिबद्ध हो रही हैं। इस संदर्भ में मैं उनसे एक बात कहना चाहता हूं। प्रगति की विभिन्न राहों पर आगे बढ़ने के साथ-साथ उन्हें कृत्रिम कटघरे और बंधन से बाहर निकलने के लिए भी अपनी शक्ति का भान करना होगा। वे यह बात कभी न भूलें कि उनमें वह शक्ति है, जिससे वे परिवार और समाज का ही नहीं, अपितु पूरे विश्व का पथ-दर्शन कर सकती हैं। आप पूछेगी कि यह कैसे। आप देखें, माता के द्वारा संतान का विकास होता है और संतान माता से प्राप्त पथ-दर्शन के आलोक में अपना भावी रास्ता तय करती है। इस दृष्टि से महिलाओं पर एक गुरुतापूर्ण उत्तरदायित्व है और इसी लिए उन्हें जगदंबा और स्रष्टा कहकर पुकारा गया है। अपेक्षा है, महिला-वर्ग, मातृ-जाति अपनी शक्ति पहचाने। ___महिलाएं यह बात समझें कि अच्छा कार्य थोड़े-से व्यक्तियों से प्रारंभ होकर ही धीरे-धीरे व्यापक बनता है। आप ध्यान दें, गंगा का जो
*श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ महिला मंडल की स्थापना के उपलक्ष्य में आयोजित सार्वजनिक महिला-सम्मेलन में प्रदत्त प्रवचन। .२५६
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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