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धर्मसंघ में इस वर्ष उल्लेखनीय तपस्याएं हुई हैं। आप देखें, बारहमासी, छहमासी की तपस्याएं हुई हैं। एक कृच्छ्र तपस्या-भ्रदोत्तर प्रतिमा तप आज भी चालू है। मुझे लगता है, पिछली शताब्दी में शायद ही ऐसी तपस्या हुई हो। साहित्य-सृजन की दृष्टि से भी यह वर्ष काफी कार्यकारी रहा है। यह कार्य उल्लेखनीय गति से चला है। आगमों के संपादन एवं अनुवाद का कार्य भी संतोषप्रद गति से आगे बढ़ा है। साधुसाध्वियों के साथ-साथ श्रावक लोग भी इसमें हाथ बंटा रहे हैं। अगला वर्ष हमारे लिए अतिरिक्त प्रसन्नता का होगा क्योंकि सामने तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह आ रहा है। ____ मंगल संदेश आज के दिन यही है कि सभी आत्मनिष्ठापूर्वक संयम और सदाचार के पथ पर आगे बढ़ें।
कलकत्ता २ नवंबर १९५९
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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