SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ : प्रतिलेखन का दिन आज मैं पैंतालीस वर्ष पूर्ण कर छयालीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। मेरे लिए आज का दिन प्रतिलेखन का दिन है। मैं अभी युवा हूं और मेरा ऐसा दृढ़ विश्वास है कि मेरा यह यौवन चिरकाल तक बना रहेगा, क्योंकि यौवन उम्र से भी कहीं अधिक विचारों पर निर्भर करता है। बूढ़ा तो लोगों ने मुझे उस दिन स्वीकार किया था, जिस दिन मेरे प्राणदेवता पूज्य गुरुदेव कालूगणी ने मेरे कंधों पर तेरापंथ धर्म संघ का भार डाला था। मुझे उस दिन की वह बात बहुत अच्छी तरह से याद है, जब मंत्री मुनिश्री मगनलालजी स्वामी ने मुझे बयासी वर्ष का बूढ़ा कहा था। लोगों को उनकी इस बात पर आश्चर्य हुआ और उन्होंने प्रश्न की भाषा में कहा कि अभी तो इनकी अवस्था मात्र बाईस वर्ष की है, फिर ये बूढ़े कैसे हो गए। उन्हें समाहित करते हुए मंत्री मुनि ने कहा था कि साठ वर्ष की अवस्था आचार्यश्री कालूगणी की और बाईस वर्ष इनकी। दोनों को जोड़ने से बयासी वर्ष हो जाते हैं। गुरु अपने उत्तराधिकारी को अपना अधिकार ही नहीं सौंपते, जीवनभर की अनुभव - संपदा भी सौंपकर जाते हैं। यह वर्ष मेरे लिए एक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी रहा है। मेरे अंतर में आत्म-बल की वृद्धि हुई है। कोई पूछे कि आपके अंतर में आत्मबल की वृद्धि कैसे हुई है तो आपको बताया जाना असंभव है, पर हुई अवश्य है और वह अनुभवगम्य है। हां, इतना अवश्य बता सकता हूं, वह पूज्यवर कालूगणी की ही देन है, उनकी कृपा का ही प्रसाद है। एकदम निम्न स्तर के विरोध हमारे सामने आए, फिर भी हमारा कार्यउत्साह और आत्मबल घटा नहीं, बल्कि बढ़ता गया । मेरी आत्मा कहती है कि आगामी वर्ष इस क्षेत्र में और अधिक प्रगति होगी । * छयालीसवें जन्म दिवस के अवसर पर प्रदत्त प्रवचन । प्रतिलेखन का दिन Jain Education International For Private & Personal Use Only २५१ www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy