________________
असहिष्णुता से कलह होता है, लड़ाइयां होती हैं और युद्ध होते हैं। सहिष्णु व्यक्ति प्रत्येक अप्रिय परिस्थिति टाल देता है। जो सहन करने का मंत्र नहीं जानता, वह शांति से जी नहीं सकता।
अणुव्रती नम्र हों। उदंडता से व्यक्ति बहुत नीचे स्तर पर चला जाता है। विनय अपना सहज गुण है। जो नम्र होता है, वह सहज ही दूसरों को अपनी और आकृष्ट कर लेता है। ___अणुव्रती समभावी हों। उनमें घृणा न हो। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति घृणा का मनोभाव रखे यह कितनी दयनीय मनोदशा है! जब प्रेम का अभाव होता है, तभी घृणा बढ़ती है। प्रेम का विस्तार होने से ही घृणा मिट सकती है। - अणुव्रती स्वावलंबी बनें-दूसरों पर निर्भर रहनेवाले व्रत निभाने में कठिनाई अनुभव करते हैं। अपने प्रयत्न में भरोसा रखनेवाला इस कठिनाई से सहज रूप में बच जाता है।
ये पांचों बातें आंदोलन के व्रतों में हैं, किंतु व्रत लेने मात्र से वे सफल नहीं होते। उनकी सफलता के लिए उनकी उपासना करनी होती है। यदि एक साथ सारे व्रतों की उपासना कोई कर सके तो बहुत अच्छी बात है, पर वैसा करना कठिन है। मैं अणुव्रतियों को परामर्श देता हूं कि इस वर्ष वे इन पांचों बातों की साधना करें।
___ साधना का क्रम यह हो कि इन पांचों बातों के अभ्यास का दैनिक लेखा-जोखा रखें। पांच अंकों की कल्पना करें और किस दिन कितने अंक प्राप्त होते हैं, इसका वे स्वयं ध्यान रखें। अगले अधिवेशन पर उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें।
दूसरों के लिए खपे बिना कोई उनके हृदय को नहीं छू सकता। आंदोलन की भावना तब तक यथेष्ट प्रसार नहीं पा सकती, जब तक दूसरों के लिए कुछ न किया जाए, परंतु दूसरों के लिए करने की क्षमता उन्हीं में हो सकती है, जो अपने-आपको तपाएं, खपाएं।
मैं विश्वास करता हूं कि अणुव्रतियों में कार्य करने की तड़प जागेगी और अगले वर्ष तक उसका परिणाम अवश्य प्रत्यक्ष होगा। कलकत्ता १९ अक्टूबर १९५९
• २५० -
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org