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१०३ : अणुव्रती धार्मिक जीवन का उदाहरण उपस्थित करें*
समय की अवधि होती है, इसलिए कोई भी अनुष्ठान आरंभ और अंत से मुक्त नहीं होता। निष्ठा ही एक ऐसी वस्तु है, जिसका अंत नहीं होता ।
निष्ठा पाना सहज बात नहीं है, पर जिसमें यह होती है, वह कुछ कर गुजरता है। सफल का अर्थ है निष्ठावान और निष्ठावान का अर्थ है सफल। प्रत्येक संस्थान को निष्ठावान व्यक्तियों की अपेक्षा होती है । अणुव्रत आंदोलन भी निष्ठावान व्रती चाहता है। निष्ठा में करो या मरो के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं होता । लक्ष्य की सिद्धि के लिए जिसमें मृत्यु का वरण करने की उमंग हो, वही जीता है और उसी की निष्ठा होती
है।
आज का वैज्ञानिक युग सिद्धांत की अपेक्षा प्रयोग में अधिक विश्वास करता है। धार्मिक लोग प्रयोग कम करते हैं, सिद्धांत अधिक दोहराते हैं, किंतु आज का भौतिकवाद अध्यात्म को चुनौती दे रहा है, उसे वे क्यों नहीं देखते ? क्या वे अनीति, असदाचार और धर्म को एक साथ चलाते रहेंगे? धर्मप्रधान देश में अनैतिकता क्यों ? इन प्रश्नों का समाधान दिए बिना क्या धार्मिक लोग धर्म को आकर्षण का केंद्र-बिंदु बनाए रख सकेंगे ? धर्म से वृत्तियों का परिमार्जन नहीं होता तो उसकी उपासना से और क्या मिल सकता है ? धर्म का वर्तमान में क्या उपयोग है? धार्मिक का जीवन कितना स्पष्ट होता है, अणुव्रती इसका उदाहरण उपस्थित करें। वे मृदु हों। दूसरों के प्रति अन्याय और शोषण करने का प्रमुख हेतु क्रूरता है । 'सब जीव समान हैं' - यह मानकर चलनेवाले दूसरे मनुष्यों के प्रति क्रूर व्यवहार करें - यह कितना बड़ा आश्चर्य है ! अणुव्रती सहिष्णु हों । * अणुव्रत आंदोलन के दशम वार्षिक अधिवेशन के पूर्णाहुति समारोह में दिया गया दीक्षांत भाषण |
अणुव्रती धार्मिक जीवन का उदाहरण उपस्थित करें
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