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________________ व्यक्तियों से कहता हूं कि वे और योजनाओं के साथ-साथ चरित्र - विकास की योजना को भी महत्त्व दें। भारत में अब भी वैसा मानस है कि वह विश्व को शांति, अनाक्रमण और सह-अस्तित्व की अमूल्य देन दे सकता है। अणुव्रती इस देन को स्थिर बनानेवाले हैं। वे समाज के अंग हैं। अर्थनीति व राजनीति से वे जुड़े हुए हैं। उन्हें विकृतियों से बचाए रखना उनका कर्तव्य है। कर्तव्य की पूर्ति के लिए उन्हें नया मोड़ लेना आवश्यक है। आंदोलन की भावना लोगों तक पहुंची है, प्रचार हुआ है। अब क्रियात्मक रूप की अपेक्षा अधिक है। अणुव्रती अभी शक्तिशाली नहीं बने हैं। वे जनता को अपने पथ पर चलने के लिए खींच नहीं पाए हैं। हो सकता है कि उनका मार्ग कठिन हो और यह भी हो सकता है कि उस मार्ग पर उन्हें जिस रूप में चलना चाहिए था, उस रूप में वे शायद न चल पाए हों। इस परिप्रेक्ष्य में वे आत्म-निरीक्षण करें। अणुव्रती समाज का पथ-दर्शन करें यह बहुत ही श्रेय है कि सब लोग अणुव्रती बन जाएं, किंतु यह भी कम श्रेय नहीं है कि समाज का पथ-दर्शन अणुव्रती करें। अणुव्रती से मेरा मतलब है - चारित्रिक मानदंडों को प्राथमिकता देकर चलनेवाले लोग। आज ऐसे लोगों की कमी हो रही है। उसका कारण भी स्पष्ट है। नई पीढ़ी को प्रारंभ से ही बौद्धिक विकास की शिक्षा मिलती है। चारित्रिक मूल्यों के प्रति उसकी आस्था बढ़ाने का यत्न नहीं किया जाता। भौतिक विचारों के पकने पर आध्यात्मिक विचार उसे बहुत कम छू पाते हैं। आध्यात्मिक भित्ति सुदृढ़ बने बिना नैतिकता भी नहीं पनप पाती। कुछ राष्ट्रों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई है । यद्यपि राष्ट्रीयता की भावना के इस विकास से नैतिक विकास को भी प्रोत्साहन मिला है, तथापि इतना स्पष्ट है कि उससे नैतिकता का एकांगी विकास हुआ है, जबकि हम उसका सर्वांगीण विकास चाहते हैं । दैनंदिन व्यवहार में भी नैतिकता हो और सब राष्ट्रों के प्रति या बड़े-बड़े कार्यों में भी नैतिकता हो। इसका आधार अहिंसा ही बन सकती है। अहिंसा और आध्यात्मिकता में कोई अर्थ भेद नहीं है। जब तक जीवन में अहिंसा नहीं आती, सबको समान मानने की भावना विकास नहीं पाती, तब तक सत्य का भी आचरण नहीं होता। सत्य, अपरिग्रह, स्वावलंबन - इन सभी का बीज अहिंसा है। अहिंसा की प्रतिष्ठा संयम से ही हो सकती है। बौद्धिक विकास के साथ संयम की शिक्षा मिले, वैसा शिक्षा प्रयोग संभवतः नहीं कर्तव्य पूर्ति के लिए नया मोड़ आवश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only २४७ www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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