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अवश्य है, क्योंकि यह उसके लक्ष्य की पूर्ति है। आंदोलन का लक्ष्य है-चरित्र-विकास। चरित्र का संबंध केवल व्यापार-शुद्धि तक ही सीमित नहीं है। उसका संबंध उन सब कार्यों से है, जो मनुष्य को हिंसक बनाते हैं। खाद्य पदार्थों में मिलावट करनेवालों को यदि चरित्रवान नहीं कहा जा सकता तो आणविक अस्त्रों का निर्माण करनेवालों को भी चरित्रवान नहीं कहा जा सकता। शोषण, अन्याय, असहिष्णुता, आक्रमण, दूसरों के प्रभुत्व का अपहरण या उसमें हस्तक्षेप और असामाजिक प्रवृत्तियां-ये सब चरित्र के दोष हैं। लगभग सभी लोग इनसे आक्रांत हैं। भेद है प्रकार और मात्रा का। कोई एक प्रकार के दोष से आक्रांत है तो कोई दूसरे प्रकार के दोष से, कोई कम मात्रा में है तो कोई अधिक मात्रा में। अभी हमारे सामने भारतीय नागरिक हैं। उनमें असहिष्णुता, आक्रमण, दूसरे के प्रभुत्व का अपहरण या उसमें हस्तक्षेप-इन दोषों की मात्रा विशेष नहीं है, किंतु शोषण और असामाजिक प्रवृत्तियों की मात्रा अधिक है। व्यावहारिक सचाई जितनी कई दूरवर्ती राष्ट्रों के नागरिकों में है, उतनी भारतीय नागरिकों में नहीं है। यद्यपि आस-पास की आलोचना में कुछ कठिनाई होती है, पर उसे मिटाने के लिए सही निदान के सिवाय
और कोई उपाय भी तो नहीं है। अणुव्रत-आंदोलन की अधिक शक्ति जीवन-व्यवहार का असदाचार मिटाने में लगी है। आंदोलन ने छोटी-छोटी बुराइयों की ओर जनता का ध्यान खींचा है। कुछ बुराइयों को लोग बुराई मानना भूल गए थे। उन्हें फिर से भान हुआ है और वे बुराई को बुराई समझने लगे हैं-यह आंदोलन की सफलता है। बुराइयां छोड़ने के अभियान में जितनी अपेक्षा थी, उतने लोग सम्मिलित नहीं हुए हैं-यह आंदोलन की विफलता है। विफलता का एक हेतु आर्थिक दुर्व्यवस्था हो सकता है, पर इसके अतिरिक्त कुछ और भी है। चारित्रिक आंदोलन इसलिए पूर्ण सफल नहीं होते कि जो और है, उसे महत्त्व नहीं दिया जाता, सारा महत्त्व अर्थव्यवस्था को दिया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्थव्यवस्था दोषपूर्ण होती है, तब समाज में विकार बढ़ते हैं। अर्थव्यवस्था का परिवर्तन एक राष्ट्रीय प्रश्न है। राष्ट्रीय नेताओं के सामने अभी समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य है। अणुव्रत-आंदोलन का लक्ष्य है चरित्रवान समाज का निर्माण। अर्थव्यवस्था सुधरे बिना चरित्रवान बनने में कठिनाई होती है तो चरित्रवान बने बिना समाजवादी समाज बने, यही भी संभव नहीं है। इसलिए मैं बहु धा राष्ट्र के प्रमुख • २४६ -
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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