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________________ १०२ : कर्तव्य-पूर्ति के लिए नया मोड़ आवश्यक* अहिंसा की सीमाएं विस्तृत हुई हैं __ अणुव्रत-आंदोलन दस वर्षों की अवधि पार कर चुका है। इस लंबे समय में विश्व के रंगमंच पर छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन हुए हैं, अनेक घटनाएं घटी हैं। विज्ञान की चामत्कारिक प्रगति हुई है। सामाजिक विकास, आर्थिक उन्नति तथा संपदा के संवर्धन की होड़ में प्रत्येक राष्ट्र तत्परता से सक्रिय है। शक्ति-संतुलन के लिए शस्त्रास्त्रों के निर्माण की स्पर्धा भी कम नहीं रही है। शीत युद्ध भी तीव्र गति से चला है। थोड़ी मात्रा में प्रत्यक्ष युद्ध भी हुआ है और कुछ प्रसंगों में वह होते-होते रुका है। सारी घटनाओं को मिलाकर देखा जाए तो लगता है कि अहिंसा की सीमाएं विस्तृत हुई हैं। समझौता नीति विकसित हो रही है सैनिक शक्ति और आणविक अस्त्रों की वृद्धि के बावजूद भय घटा नहीं है, प्रत्युत बढ़ा है और मानव-जाति के प्रलय की कल्पना स्पष्ट हुई है। तब एकमात्र शस्त्र में विश्वास करनेवाले लोगों को भी यह अनुभव हुआ है कि विवादों के अंत का यह सही मार्ग नहीं है। पारस्परिक सौहार्द, विश्वास, भाईचारा, सामीप्य और एक-दूसरे की नीति एवं कार्यक्रमों का सम्मान करने से ही समस्याओं का समाधान हो सकता है। इस पद्धति के द्वारा ही मनुष्य, मनुष्य की भांति जी सकता है। एक वाक्य में यही कि आवेगपूर्ण प्रवृत्ति घट रही है, समझौता-नीति विकसित हो रही है। अणुव्रत आंदोलन की भूमिका यह जो हुआ है, वह अणुव्रत-आंदोलन के द्वारा ही हुआ है-ऐसी गर्वोक्ति मैं नहीं कर सकता, किंतु जो हुआ है, उसका भागीदार वह *अणुव्रत-आंदोलन के दशम वार्षिक अधिवेशन में प्रदत्त उद्घाटन-भाषण। कर्तव्य-पूर्ति के लिए नया मोड़ आवश्यक - २४५ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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