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ठीक नहीं करते हैं तो ग्रामीण लोग सही राह पर कैसे चल सकेंगे? यही तो कारण है कि नगरों में नैतिक प्रचार का कार्य कठिन मानते हुए भी मैंने चातुर्मास-प्रवास के लिए महानगर कलकत्ता को चुना है।
यहां मुझे विरोध और स्वागत दोनों मिले। पर आधारशून्य विरोध से मैं विचलित नहीं हुआ और प्रतिदिन होनेवाले स्वागत को मैंने बहुत करके नहीं माना। निष्ठापूर्वक सत्प्रवृत्त रहना मेरे जीवन का ध्येय है। फिर उससे कैसा भी परिणाम क्यों न आए, विचलित होना या प्रसन्न होना मेरा कार्य नहीं है। इस संबंध में मेरे लिए अतीव आह्लाद की बात यह है कि इस कलकत्ता-प्रवास में मुझे यहां के सभ्य नागरिकों, उच्चस्तरीय पत्रकारों व साहित्यकारों तथा नैतिक मूल्यों में निष्ठा रखनेवाले जन-नेताओं का पर्याप्त सहयोग मिलता रहा है। विविध तत्त्वों से प्रभावित इस कलकत्ता महानगर के वातावरण में नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने में मुझे जो सफलता मिली, वह मेरे लिए अत्यंत संतोष का विषय है। लगभग एक मास पश्चात मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा से हमारी आगामी यात्रा का शुभारंभ होनेवाला है। यह कलकत्ता से सरदारशहर (चूरू, राजस्थान) तक लगभग बारह सौ मील की एक अखंड पदयात्रा है।
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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