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________________ लाख विद्यार्थियों को विद्यार्थी-वर्ग से संबद्ध अणुव्रत-प्रतिज्ञाएं दिलाने का तथा कम-से-कम पांच सौ विद्या-केंद्रों में नैतिक संगठन बनाने का ध्येय रखा गया है। इस अधिवेशन में तीन दिनों के प्रेरणाप्रद कार्यक्रम रहेंगे। अंतरंग सम्मेलन में अणुव्रती अपने विगत वर्ष के संस्मरण प्रस्तुत करेंगे। निर्धारित नियमों पर आलोचन-प्रत्यालोचन चलेगा और व्रत-वृद्धि पर समागत सुझावों पर विचार होगा। खुले अधिवेशन में सहस्रों अणुव्रती आगामी वर्ष के लिए सामूहिक प्रतिज्ञाएं करेंगे। कलकत्ता-जैसे भौतिकताप्रधान नगर में नैतिक और आध्यात्मिक जाग्रति का यह समारोह संभवतः अपने-आपमें प्रथम ही होगा। इसी प्रसंग में विगत वर्ष का सिंहावलोकन कर लेना भी आवश्यक होगा। आलोच्य वर्ष नैतिक भावनाओं के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा। देश के विभिन्न भागों में आकर्षक एवं रुचिपूर्ण कार्य चला। कुछ नई दिशाओं में भी आंदोलन आगे बढ़ा। इस संबंध में कलकत्ता में आयोजित अणुव्रत भावना पर आधारित सिने कांफ्रेंस, पटना विश्वविद्यालय में परीक्षापत्रों में अणुव्रत-आंदोलन पर निबंध की मांग, कलकत्ता में कुछ-एक कुख्यात असामाजिक तत्त्वों का अणुव्रत से प्रेरणा पाकर सद्गृहस्थ के रूप में बदल जाना आदि उल्लेखनीय घटनाएं हैं। इस वर्ष उत्तरप्रदेश और बिहार की यात्रा करते हुए बंगाल आए। मार्गवर्ती गांवों में सहस्रों-सहस्रों लोग जिस प्रकार तन्मय होकर अणुव्रत की बात सुनते तथा जीवनगत बुराइयों का दृढ़ता एवं आत्मविश्वासभरे शब्दों में परित्याग करते, वह दृश्य आज अविस्मरणीय बन रहा है। मुझे पद-यात्राओं से यह अनुभव मिला है कि गांवों के लोग सुधार को जिस द्रुत गति से पकड़ते हैं, उस द्रुत गति से शहर के लोग नहीं। नगर के लोगों में उपदेश होता है तो लगता है मानो पानी चिकने घड़ों पर पड़ रहा है। इसके विपरीत ग्रामीण लोगों में जब उपदेश होता है, तब लगता है कि पानी किसी उर्वर खेत में बरस रहा है। बावजूद इसके, नैतिक प्रेरणा के विषय में नगरों की उपेक्षा करना उचित नहीं है। हालांकि यह कार्य कठिन अवश्यक है, तथापि प्राथमिकता से करने का है, क्योंकि नगरों के लोग कोटि-कोटि ग्रामीणों के अगुआ हैं। वे यदि अपना रास्ता अणुव्रत-आंदोलन अपने ध्येय में सफल है - २४३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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