________________
९९ : विधायकों के लिए आचार-संहिता बने
अणुव्रत-आंदोलन पिछले एक दशक से राष्ट्र में कार्य कर रहा है। राष्ट्र के अनेक मूर्धन्य विचारकों, विद्वानों व जन-नेताओं का इसे वैचारिक समर्थन मिला है, मिल रहा है, पर मेरी दृष्टि में वैचारिक समर्थन ही पर्याप्त नहीं है। जब तक वह समर्थन आचार के धरातल तक नहीं आ जाता, तब तक आंदोलन का मूलभूत उद्देश्य पूरा नहीं होता, साध्य की सिद्धि दूर ही रहती है। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि वैचारिक समर्थन का कोई मूल्य ही नहीं है। उसका भी अपना एक मूल्य है, पर इतना सुनिश्चित है कि जब तक आचार उसके अनुकूल नहीं होता, तब तक उसकी बहुत सार्थकता प्रकट नहीं होती। इसलिए अपेक्षा है कि लोग वैचारिक समर्थन के साथ-साथ आंदोलन की आचार-संहिता स्वीकार करने का लक्ष्य भी सामने रखें।
कुछ लोग आचार-संहिता स्वीकार करना आवश्यक नहीं समझते, पर मेरी दृष्टि में आचार-संहिता स्वीकार करना आवश्यक ही नहीं, अत्यंत आवश्यक है। आप देखें, अध्यात्म के क्षेत्र में साधु तथा समाज के क्षेत्र में विधायक ये दोनों प्रतीक होते हैं, लेकिन इन दिनों इन दोनों ही प्रतिनिधियों ने अपने आचरण का जैसा परिचय दिया है, उसे देखसुन-पढ़कर आनेवाली पीढ़ियां हंसें, नहीं-नहीं रोएं तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कैसी बात है कि एक देश के प्रधानमंत्री की हत्या एक बौद्ध भिक्षु के हाथों हुई है! यह श्रमणों एवं अहिंसा के पुजारियों के लिए कितने शर्म की बात है! जिनके नाम के साथ गौतम बुद्ध का नाम जोड़ा जाता है, जिन्हें श्रमण कहा जाता है, उनके द्वारा ऐसा जघन्य और नृशंस कृत्य!
दूसरी तरफ देश की विधानसभाओं में समाज के प्रतीक-विधायक आपस में माइक के डंडों, जूतों आदि का प्रयोग करते हैं। ऐसी स्थिति में मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि वे जनता के पथ-दर्शन का कार्य कैसे • २३८ ।
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org