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________________ ९७ : अंतर्मुखी बनने का दिन* आज का दिन मेरे लिए अंतर्मुखी बनने का दिन है। तेईस वर्ष पूर्व प्रातःस्मरणीय पूज्य गुरुदेव कालूगणी ने मुझे आचार्यपद का दायित्व सौंपा था। उस दायित्व का निर्वहन करता हुआ आज मैं चौबीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। इन तेईस वर्षों में संसार ने अनेक नए मोड़ लिए। सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में नई जाग्रति आई। आध्यात्मिक क्षेत्र भी परिवर्तन से अछूता नहीं रहा। धार्मिक जगत में भी चेतना जागी। मैंने भी मौलिकता की सुरक्षा करते हुए युग के साथ परिवर्तन किया है। यद्यपि मैं तेरापंथ धर्मसंघ का आचार्य हूं, तथापि मेरा कार्यक्षेत्र तेरापंथ-समाज और जैन-समाज तक ही सीमित नहीं है। पूरे मानवसमाज का हित केंद्र में रखकर मुझे कार्य करना है, क्योंकि धर्म बिलकुल असांप्रदायिक तत्त्व है। वह किसी संप्रदायविशेष के लिए नहीं होता। भगवान महावीर ने हमें व्यापकता की राह दिखाई है। वे जो धर्मोपदेश करते थे, वह मात्र जैनों के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण मानव-समाज के लिए, बल्कि कहना चाहिए कि प्राणिमात्र के उत्थान और कल्याण के लिए होता था। हम तो उन्हीं के पदचिह्नों पर चलनेवाले हैं। फिर हम क्यों संकीर्ण दायरे में रहें ? अणुव्रत-आंदोलन के माध्यम से हमने जो चारित्रिक जाग्रति का काम शुरू किया है, वह बहुत ही व्यापक कार्य है। बिना किसी संकीर्णता के वह मानव-मानव को सच्चरित्र बनाने का प्रयास करता है। हालांकि यह कार्य आसान नहीं है, बहुत कठिन है, तथापि हमें इसकी कोई चिंता नहीं है। हमें अपनी पूरी शक्ति के साथ इसे आगे बढ़ाना है। मैं अपने श्रावकों से विशेष रूप से कहना चाहता हं कि वे तो अवश्यमेव इस नैतिक अभियान के साथ जुड़ें, अपना जीवन नैतिक आदर्शों के इस सांचे में ढालें। आपको यह नहीं देखना है कि दूसरे-दूसरे *चौबीसवें आचार्य-पदारोहण दिवस के प्रसंग पर प्रदत्त प्रवचन से। • २३४ - - ज्योति जले : मुक्ति मिले - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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