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पराङ्मुख बनता जा रहा है। अतः आज की बड़ी अपेक्षा यह है कि मानव की यह गलत मनोवृत्ति या चिंतन बदला जाए। जन-जन में पुनः इस भावना का तीव्र प्रसार किया जाए कि अर्थ मात्र आजीविका चलाने का साधन है, जीवन-साध्य नहीं। प्रश्न होगा कि फिर साध्य क्या है। साध्य है-संयम। साध्य है-सदाचार। साध्य है-सात्त्विकता। अणुव्रत यही उद्देश्य लेकर चलनेवाला एक व्यापक अभियान है। यह जाति, वर्ण, वर्ग आदि के भेद-भाव के बिना मानव-मानव को अर्थवाद के चंगुल से बाहर निकालकर उसे संयम, सदाचार एवं सात्त्विकता की ओर अग्रसर करना चाहता है। आप भी अणुव्रत को समझें और अपनाएं। आपके चिंतन, व्यवहार, आचरण और संपूर्ण जीवन में एक गुणात्मक परिवर्तन आएगा।
सैन्ट्रल बैंक, कलकत्ता २९ अगस्त १९५९
मानव अपनी पहचान करे
-२३३.
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