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९५ : भौतिकता से अध्यात्म की ओर मुड़ें
आज संसार में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि अनेक प्रकार की समस्याएं हैं, पर मेरी दृष्टि में मूलभूत समस्या मनुष्य के निर्माण की है। अनेक प्रयत्नों के बावजूद मानव ऊंचा नहीं उठ रहा है। पूछा जा सकता है कि इसका कारण क्या है। कारण तो निश्चय ही है, क्योंकि कारण के बिना कभी कोई कार्य नहीं हो सकता। फिर इस बात के तो अनेक कारण बताए जा सकते हैं। उनमें मूलभूत कारण है-मानव का भौतिकवादी दृष्टिकोण तथा अध्यात्म के प्रति अनास्था का भाव। मेरा निश्चित अभिमत है कि जब तक मानव भौतिक-सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए विलासमय जीवन जिएगा, भौतिक साधनों की ओर अधिक झुकेगा, तब तक इस स्थिति में बदलाव की कोई संभावना नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहूं तो सुधार असंभव है। आज परदा पर्था, दहेज, मिलावट, झूठा तौल-माप-जैसी बहुत-सी बुराइयां समाज में व्याप्त हो रही हैं। वे उस दिन स्वतः समाप्त हो जाएंगी, जिस दिन मानव का दृष्टिकोण परिवर्तित हो जाएगा। वह भौतिकवाद से अध्यात्माभिमुख बन जाएगा, अपनी तृष्णा एवं लालसा को सीमित व नियंत्रित कर लेगा, अति अर्थार्जन से विमुख होकर संयम की दिशा में गतिशील बन जाएगा। इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि व्यक्ति अपने जीवन की तटस्थ समीक्षा करे। ___ मेरा ऐसा अभिमत है कि जब तक मनुष्य का चिंतन अति संग्रह पर आधारित रहेगा, तब तक उसकी मनुष्यता निखर नहीं सकेगी, जीवन को सही दिशा प्राप्त नहीं हो सकेगी। आप निश्चित माने, जो व्यक्ति दूसरों के अधिकार छीनकर, कुचलकर तथा शोषणपूर्ण तरीकों से अर्थसंग्रह कर धनकुबेर बनने की लालसा करता है, उसका पतन स्वाभाविक है, अवश्यंभावी है। इसलिए इस अति संग्रह की मानसिकता में परिवर्तन आना अत्यंत आवश्यक है। कलकत्ता, २३ अगस्त १९५९ भौतिकता से अध्यात्म की ओर मुड़ें
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