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९४ : संस्कृत और भारतीय संस्कृति
संस्कृत और संस्कृति ये दोनों शब्द डकून् करणे धातु से बने हैं। जिस प्रकार एक ही धातु के दो रूप होने के कारण दोनों शब्दों में साम्य है, उसी प्रकार संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति में अन्योन्याश्रय संबंध है तथा ये दोनों एक-दूसरे से काफी प्रभावित हैं। दूसरे शब्दों में ये एक-दूसरे के अभाव में अपूर्ण हैं।
संस्कृति भाव एवं भाषा का संगम है। भाव जहां वैयक्तिक होता है, वहां भाषा सामाजिक भी होती है। भारतीय संस्कृति संस्कृत भाषा में भरी पड़ी है। भारतीय संस्कृति जिस प्रकार पुरातन है, संस्कृत भाषा की भी एक लंबी परंपरा है। वैदिक साहित्य तो उसमें भरा पड़ा है, उत्तरवर्ती बौद्ध-साहित्य एवं जैन-साहित्य ये दोनों भी उससे अटे पड़े हैं। यद्यपि अनेक आचार्यों ने अपने-अपने समय में लोक-भाषा भी अपनाई है, तथापि संस्कृत भाषा का अपना एक विशेष महत्त्व है। यद्यपि युगीन कुछएक परिस्थितियों के कारण आज संस्कृत और संस्कृति दोनों ही मंद हैं, तथापि मेरा ऐसा मानना है कि भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए संस्कृत भाषा को जीवित रखना आवश्यक है।
जिस प्रकार संस्कृत भाषा का व्याकरण इतना उन्नत और कसा हुआ है कि उसमें कोई विकार नहीं है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति भी एक अत्यंत उन्नत संस्कृति है और वह विकारों से परे है। बहुत-से लोग संस्कृति शब्द को समझने में भूल करते हैं। वे उसे अंग्रेजी के कलचर (Culture) शब्द के स्थान पर व्यवहृत करते हैं, पर संस्कृति शब्द का यह सही अर्थ नहीं है। यह बहुत ही गहरा शब्द है। संस्कृति तो मांजने को कहते हैं। इसके द्वारा जीवन एवं जीवन की पद्धति का संस्करण एवं परिमार्जन होता है।
भारतीय संस्कृति की बड़ी विशेषता यह है कि उसमें किसी के संस्कृत और भारतीय संस्कृति -
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