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________________ सबके साथ मैत्री की बात सिखाता है, सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ता है, प्रमोद भाव के साथ जीने की अभिप्रेरणा देता है। ईर्ष्या, द्वेष, कलह, आक्षेप-प्रक्षेप आदि तत्त्वों का धर्म से कोई संबंध नहीं है। जो धर्म इन तत्त्वों को बढ़ावा देता है, वह सही माने में धर्म नहीं है। वह तो धर्म का विकृत रूप है। दूसरे शब्दों में वह अधर्म है। आज आवश्यकता इस बात की है कि धर्म का मौलिक या वास्तविक स्वरूप समझकर उसे जीवन में उतारा जाए, जीवन-व्यवहार और आचरण का हिस्सा बनाया जाए। यदि ऐसा होगा तो मेरा विश्वास है कि इस वैज्ञानिक युग में भी धर्म की ध्वजा ऊंची रहेगी। वैज्ञानिक नया मोड़ लें आज के वैज्ञानिकों ने छोटी-छोटी वस्तु की जो सूक्ष्म खोजबीन की है, उसे देख लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। ऐसी अनेक कल्पनाएं आज साकार हो गई हैं, जो पहले हवाई महल समझी जाती थीं, पर आत्मा के संदर्भ में वे कोई खोज नहीं कर पाए हैं, जो कि धर्म का केंद्र बिंदु है। मैं समझता हूं, यह तभी संभव है, जब उसका अस्तित्व स्वीकार कर उसे समझने का प्रयत्न हो। हमारे ऋषि-महर्षियों ने आत्मा, परमात्मा, चेतना आदि की खोज की, पर उन्होंने यह खोज आज के वैज्ञानिकों की तरह यंत्रों से सुसज्जित प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि साधना की गहराई में उतरकर की थी। इस खोज की यात्रा में सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, मैत्री, शील, महाव्रत, अणुव्रत आदि तत्त्व प्राप्त हुए, जो कि मानव-समाज के लिए अत्यंत उपयोगी और लाभकारी सिद्ध हो रहे हैं। इसके विपरीत वैज्ञानिकों ने जो भौतिक आविष्कार किए हैं, उनके कारण सर्वत्र भय, उद्वेग और उत्तेजना का वातावरण बना हुआ है। अपेक्षा है, वैज्ञानिक लोग भौतिकता से धर्म आध्यात्मिकता की ओर मुड़ें और इस दिशा में खोज प्रारंभ करें, पर जैसा कि मैंने अभी कहा, यह तभी संभव है, जब वे आत्मा का अस्तित्व स्वीकार कर उसे समझने का लक्ष्य बनाएंगे। कलकत्ता ११ जुलाई १९५९ • २२८ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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