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भी लोग बड़े आदर के साथ उनका स्मरण करते हैं। इससे ठीक विपरीत स्थिति होती है-दुःख में विचलित होनेवालों की। वे पतझड़ के पत्तों की तरह होते हैं। उन्हें कोई जानता तक नहीं कि वे कौन हैं। इसलिए दुःख में विचलित नहीं होना चाहिए।
उत्तरपाड़ा, कलकत्ता ८ जुलाई १९५९
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. ज्योति जले : मुक्ति मिले
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