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वह सोचता है कि यह क्या है, ज्ञाता कौन है और ज्ञेय कौन है। यह चिंतन करते-करते वह ऐसा तल्लीन हो जाता है कि सिद्धावस्था तक पहुंच जाता है।
ध्यान के इन चार प्रकारों में से शुक्ल लेश्यावाला व्यक्ति धर्म्य ध्यान और शुक्ल ध्यान में लीन रहता है। आर्त और रौद्र ध्यान में कभी नहीं
जाता ।
शुक्ल लेश्या की एक परिणति के बारे में मैंने संक्षेप में बताया। इसकी अन्य भी कई परिणतियां हैं। उनके बारे में भी जानना आवश्यक है।
सूरज जूट प्रेस काशीपुर, कलकत्ता ७ जुलाई १९५९
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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