________________
९९ : शुक्ल लेश्या की परिणति
छह लेश्याओं का विवेचन चल रहा है। तीन शुभ लेश्याओं में अंतिम लेश्या है - शुक्ल लेश्या । जैसा उसका नाम है, वैसा ही उसका अर्थ और गुण है। शुक्ल अर्थात धवल और उज्ज्वल । यही शुक्ल लेश्या की प्रकृति है । इस लेश्यवाला व्यक्ति चरित्र से उज्ज्वल एवं हृदय से स्वच्छ होगा । उसके अंतःकरण में छल, कपट, दंभ आदि दुष्प्रवृत्तियों के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा उत्तराध्ययन सूत्र में शुक्ल लेश्या की ऐसी अनेक परिणतियां या लक्षण बताए गए हैं, जिनके आधार पर यह निर्णय या पहचान की जा सकती है कि अमुक व्यक्ति पद्म लेश्यावाला है। उनकी पहली परिणति हैअट्टरुद्दाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए ।
जो आर्त और रौद्र ध्यान का वर्जन करता है तथा धर्म्य और शुक्ल ध्यान में तल्लीन रहता है, वह शुक्ललेश्यावान है।
ध्यान का तात्पर्य एकाग्र चिंतन से है, पर एकाग्र चिंतन एकांततः अच्छा ही नहीं होता, वह बुरा भी हो सकता है, होता है। इस दृष्टि से ध्यान के चार प्रकार किए गए हैं - आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल । इष्ट व्यक्ति/ वस्तु का वियोग तथा अनिष्ट व्यक्ति / वस्तु का संयोग होने पर जो चिंतन की एकाग्रता होती है, उसे आर्त ध्यान कहते हैं। वेदना से उत्पन्न होनेवाली आतुरता और विषय - सुख प्राप्त करने के लिए किया जानेवाला मानसिक संकल्प भी आर्तध्यान है। किसी को मारना, झूठ बोलना, चोरी करना, डाका डालना, दूसरे को फंसाना आदि से अनुबद्ध चिंतन तथा भौतिक विषयों की सुरक्षा के लिए होनेवाला चिंतन रौद्रध्यान है। लोक-स्वरूप, आत्मकल्याण, भगवद्वाणी आदि पर चिंतन एकाग्र होना धर्म्य ध्यान है। शुक्ल ध्यान सबसे अतीत है। इसकी तुलना पातंजलयोगदर्शन में वर्णित समाधि से होती है। दोनों में काफी साम्य है। यदि शुक्ल ध्यानवाले की दृष्टि किसी वस्तु पर स्थिर रह जाती है तो शुक्ल लेश्या की परिणति
२२३ •
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org