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________________ काया तीनों अधिक चंचल न हों तथा जिसका विवेक स्थिर हो। क्षणक्षण में अस्थिर और बदलनेवाला प्रगति नहीं कर सकता। तेजोलेश्यावाले प्राणी का एक अन्य लक्षण है कि वह अमायावी होगा। माया यानी वंचना को उसके जीवन में कोई स्थान नहीं होगा। इस स्थिति में वह किसी का बुरा तो खैर कर ही नहीं सकता, किसी को बुरी/गलत सलाह भी नहीं दे सकता। गलत सलाह देनेवाला एक बार भले अपने मन में प्रसन्न हो जाए, पर अंततोगत्वा उसका बुरा परिणाम उसे अवश्य भोगना पड़ता है। तेजोलेश्यावाले व्यक्ति के विचार ऊंचे होंगे। वह दिन-भर हंसीमजाक, ठट्ठा आदि करके अपना समय बर्बाद नहीं करेगा। मेरी दृष्टि में ज्यादा हंसी-मजाक आदि करना तुच्छता का लक्षण है। महान व्यक्ति इनसे बचता है। जीवन में विनय का गुण होना भी तेजोलेश्या का एक लक्षण है। विनय का गुण प्रकट हो जाने के बाद उच्छंखलता को टिकने के लिए स्थान ही कहां है? तत्त्वतः विनय एक आत्मगुण है। आप ध्यान दें, हर महान व्यक्ति में इस गुण के दर्शन होते हैं। दमितेंद्रिय, योगी और उपधानवान होना भी तेजोलेश्या की परिणतियां है। दमितेंद्रिय का अर्थ तो आप समझते ही हैं। जिसने अपनी इंद्रियां नियंत्रित कर ली हो, वह दमितेंद्रिय है। योगी का तात्पर्य साधु या संन्यासी होने से नहीं है। योगी का तात्पर्य है योगवान होना। योगवान वह होता है, जिसका मन, वचन और काया तीनों ध्यान, स्वाध्याय, चिंतन-मनन आदि धार्मिक क्रियाओं में लगे रहें। उपधानवान का आशय तपस्वी होने से है। वह तपस्वी, जो आगम का स्वध्याय करने के लक्ष्य से तपस्या करता है, उपधानवान कहलाता है। ऐसी मान्यता है, बल्कि अनुभूत सचाई भी है कि तपस्या का संबल साथ रहने से स्वाध्याय में विघ्न-बाधा नहीं आती। तेजोलेश्या के कुछ लक्षण मैंने प्रकट किए। कुछ लक्षण और अवशिष्ट हैं। उनके बारे में संभवतः आप कल सुनेंगे। प्रभु निवास हैस्टिंगस, कलकत्ता ४ जुलाई १९५९ .२१८ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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