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________________ मनुष्य प्रगति तब तक नहीं कर सकता, जब तक उसके दोनों चरण आगे न बढ़ते रहें। जो फिल्म-निर्माता यह कहते हैं कि यह सुधार जनसापेक्ष ही है, वे यह भूल जाते हैं कि सिनेमा स्वयं रुचि-परिष्कार का भी एक साधन है। आज सिनमाओं के माध्यम से भावी समाज-रचना के लुभावने चित्र लोगों को दिखाए जाते हैं और उसके द्वारा अपने-अपने वाद की ओर उन्हें आकृष्ट किया जाता है। स्वास्थ्य आदि नाना विषयों का सिनेमा के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है। समाजगत नाना कुप्रथाओं व रूढ़ियों से जन-रुचि मोड़े, ऐसा का प्रयत्न किया जाता है। फिर क्या कारण हो सकता है कि प्रेम, विलास, आसक्ति और अश्लीलता के विषय में सिनेमा जन-रुचि का ही पोषण करता है? ऐसा लगता है कि फिल्म-निर्माताओं को देश से भी अधिक चिंता अपने व्यवसाय की है। इस स्थिति में देश चाहे रसातल में ही क्यों न चला जाए, पर उनका व्यवसाय फलता-फूलता रहे, यह दृष्टिकोण रहता है। लोकतांत्रिक देशों में तभी सुधार संभव होता है, जब समाजगत अपेक्षाओं के सामने व्यक्तिगत स्वार्थ गौण मान लिए जाते हैं। अणुव्रतआंदोलन संग्रह व शोषण की वृत्तियां मिटाकर आवश्यकताओं के अल्पीकरण पर बल देता है। वह व्यक्ति में संकीर्ण वृत्तियों का संकोच कर मित्ती मे सव्वभूएसु व वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श लाना चाहता है। सभ्य व शिक्षित लोगों का बहुमत अश्लील प्रदशनों के पक्ष में हो, ऐसा नहीं लगता। अशिक्षित व असभ्य लोगों के अज्ञान को जनरुचि कहकर व्यवसायी समाज उससे अनुचित लाभ उठता है। यह जन-रुचि के बारे में एक प्रकार का शोषण है। अशिक्षित व असभ्य लोग तो बच्चे के समान होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि हर कार्य में उनकी रुचि को ही प्रधानता दी जाए। वहां उनकी रुचि के बजाय उनके हिताहित का प्रश्न प्रमुख है। अभिभावकों का कर्तव्य होता है कि बच्चा यदि अपनी सहज रुचि के कारण किसी अनुचित कार्य की ओर प्रवृत्त होता है तो वे उसे रोकें और उचित प्रवृत्ति करने का मार्ग-दर्शन करें। समाज में जो लोग शिक्षित, सभ्य व अगुआ हैं, उनका कर्तव्य है कि जो जन-रुचि उचित और हितकर नहीं है, उसे बदलें, न कि अपने लाभ के लिए उसका पोषण ही करते रहें। यह भी अनुभव में आ रहा है कि सिनेमा के चालू स्तर से लोग ऊबने लगे हैं और वे उच्चस्तरीय प्रदर्शन पसंद .२१२. - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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