SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से भी अनुचित है। आप देखें- संसार में अरबों व्यक्ति मांसाहारी हैं ! अब क्या उनसे लड़ा जाए? क्या झगड़ा किया जाए? हमारा कर्तव्य तो यही है कि हम उन्हें मांसाहार का अनौचित्य समझाएं, उनके विचार परिष्कृत करने का प्रयास करें। यदि हमारे प्रयास से उनके विचार परिवर्तित हो जाते हैं और वे मांसाहार छोड़ देते हैं, तो बहुत अच्छा है, पर सभी लोगों के विचार बदल जाएं और वे मांसाहार का परित्याग कर दें, यह संभव प्रतीत नहीं होता। हमारे सघन प्रयास के बावजूद कुछ लोग ही मांसाहार से मुक्त हो सकेंगे। शेष लोगों के प्रति हमारी मध्यस्थ वृत्ति रहनी चाहिए। उनसे विवाद करना हमारा काम नहीं है। सार-संक्षेप यह है कि विरोधी विचारों के प्रति सहिष्णुता की वृत्ति जागना बहुत जरूरी है। संभव हो सके तो विचार-भेद मिटाएं, पर ऐसा संभव न होने की स्थिति में कम-से-कम असहिष्णु तो न बनें। जैनएकता की यात्रा में यह एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव हो सकता है। सभी संप्रदायों में परस्पर सौहार्दपूर्ण वातावरण रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि सभी अपने व्यवहार की मर्यादा समझें। एक संप्रदाय के लोग दूसरे संप्रदाय के लोगों के प्रति घृणा का व्यवहार न करें, क्योंकि इससे कटुता पैदा होती है । फिर उस संप्रदाय के साधु-साध्वियों के साथ दुर्व्यवहार हो, उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया जाए, यह तो और भी अनुचित है। इस संदर्भ में मैं तो यहां तक कहता हूं कि किसी संप्रदाय के साधु-साध्वी के प्रति अंतर में भी घृणा और तिरस्कार की भावना नहीं होनी चाहिए । दुर्व्यवहार और अपशब्दों के प्रयोग की बात तो उसके बाद की है। हां, यह दूसरी बात है कि श्रद्धा और भक्ति तो वहीं प्रकट होगी, जहां शुद्धाचार है। जहां इसका अभाव खटकता है, वहां आंतरिक श्रद्धा-भक्ति की बात संभव नहीं है, तथापि शिष्टाचार और सद्व्यवहार की बात कभी नहीं भूलनी चाहिए। यदि सभी लोग इस मर्यादा का पालन करें तो जैन- एकता की दृष्टि से यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात होगी । दबावपूर्वक संप्रदाय - परिवर्तन करवाने की प्रवृत्ति बहुत ही अनुचित है। इससे पारस्परिक संबंध बिगड़ते हैं, कहीं-कहीं संघर्ष की स्थिति भी पैदा हो सकती है। हां, यदि कोई स्वेच्छा से समझपूर्वक ऐसा करता है, तो यह एक अलग बात है। उसे नहीं रोका जा सकता, पर इसमें भी इस मर्यादा का तो ध्यान रखना ही होगा कि उसके साथ सामाजिक जैन - एकता का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only २०७• www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy