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कषैला होता है। तेजोलेश्या का रस पके हुए आम और पके हुए कपित्था फल के रस से अनंतगुना खट-मीठा होता है। पद्म लेश्या का रस अच्छी सुरा, विविध आसवों, मधु और मैरेयक के रस से अनंतगुना मधुर होता है। शुक्ल लेश्या का रस खजूर, अंगूर, दूध, खांड और शक्कर के रस से अनंतगुना मधुर होता है।
प्रथम तीन लेश्याओं की गंध अत्यंत अशुभ, अप्रिय एवं अमनोज्ञ होती है। वह गाय, श्वान और सर्प के कलेवर की दुर्गंध से अनंतगुनी अधिक दुर्गंधमय होती है। शेष तीन प्रशस्त लेश्याओं की गंध सुगंधित पुष्पों तथा पीसे जा रहे सुवासित पदार्थों की सुगंध से भी अनंतगुनी अधिक सुगंधित होती है। वह अत्यंत शुभ, प्रिय एवं मनोज्ञ होती है।
प्रथम तीन अप्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श करवत की धार, गाय की जिह्वा एवं शाक वृक्ष के पत्तों के कर्कश स्पर्श से भी अनंतगुना अधिक कर्कश होता है। अंतिम तीन प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श आक की रूई, मक्खन व शिरीष पुष्पों के मृदु स्पर्श से भी अनंतगुना मृदु होता है।
कलकत्ता
२२ से २६ जून १९५९
लेश्या : एक विवेचन
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२०३०
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