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यहां यह ध्यान में ले लेने की बात है कि छह लेश्याओं के नाम द्रव्य लेश्या के आधार पर रखे गए हैं। नाम की तरह ही इनके अलग-अलग वर्ण, रस, गंध और स्पर्श का भी विवरण प्राप्त है।
कृष्ण लेश्या का वर्ण जीमूत यानी जल से परिपूरित घने कृष्ण बादल, महिष, द्रोण काक के पंख, खंजन, अंजन एवं नयनतारा की कालिमा के समान है।
नील लेश्या का वर्ण नील अशोक वृक्ष, चाष पक्षी के पंख तथा स्निग्ध वैडूर्य मणि की नीलिमा के समान बताया गया है।
कापोत लेश्या का वर्ण अलसी (तीसी) के फूल, कोयल के पंख तथा कबूतर की ग्रीवा के रंग के सदृश होता है।
तेजोलेश्या का वर्ण हिंगलु, धातु- गेरु, नवोदित सूर्य, तोते की चोंच और दीपशिखा की लालिमा के समान होता है।
पद्म लेश्या का वर्ण हलदी या हरिताल को तोड़ने पर प्रकट रंग और सनधान्य फूल के सदृश पीला होता है।
शुक्ल लेश्या का वर्ण शंख, अंक नामक रत्न, कुंद के फूल, दुग्धधारा, चांदी तथा मुक्ताहार के सदृश शुभ्र धवल होता है ।
यह कोई आवश्यक नहीं कि जिस व्यक्ति का वर्ण कृष्ण होता है, उसके आत्म- परिणाम या भाव भी क्रूर हों तथा जिसका वर्ण गौर हो, उसकी भावधारा अच्छी हो । तत्त्वतः भावधारा का संबंध शरीर के वर्ण से नहीं, अपितु लेश्या से है।
यह एक सुनिश्चित व्याप्ति है कि जिसमें वर्ण है, उसमें रस होगा ही । बहुधा तो वर्ण के आधार पर रस की और रस के आधार पर वर्ण की अवगति हो जाती है। आत्मा और आकाश दोनों अरूपी द्रव्य हैं । उनमें वर्ण नहीं है तो रस भी नहीं है। जिस प्रकर छहों लेश्याओं के अलग-अलग वर्ण हैं, उसी प्रकार छहों के रस भी अलग-अलग हैं। कृष्ण लेश्या का रस कड़वे तुंबे, नीम तथा कटुक रोहिणी की छाल के रस से भी अनंतगुना कड़वा होता है। नील लेश्या का रस कृष्ण लेश्या - जैसा कड़वा नहीं होता । उसे त्रिकटु यानी सोंठ (शूंठी), पीपल ( पिप्पली), काली मिर्च तथा गजपीपल के रस से अनंतगुना तिक्त बताया गया है। कापोत लेश्या का रस कच्चे आम और कच्चे कपित्थ से अनंतगुना
ज्योति जले : मुक्ति मिले
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