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________________ ८३ : नैतिक दुर्भिक्ष कैसे मिटे एक समस्या : एक समाधान मैं देख रहा हूं कि भारतवर्ष में नैतिकता का दुर्भिक्ष-सा छा रहा है। नैतिक मूल्य समाप्त हो रहे हैं। यह एक गंभीर स्थिति है। राष्ट्र-हितैषी लोग इस स्थिति से काफी चिंतित हैं। जब-तब वे अपनी चिंता व्यक्त भी करते रहते हैं, पर मैं मानता हूं कि चिंता इस समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि कहना चाहिए कि किसी समस्या का समाधान नहीं है। हम चिंता नहीं, चिंतन करें। मेरी समझ में इस स्थिति से त्राण पाने का एक ही उपाय है कि व्यक्ति-व्यक्ति के मन में यह भावना जाग्रत की जाए कि मेरे निमित्त किसी अन्य का अहित न हो, मेरे कारण किसी व्यक्ति का सुख बाधित न हो, मेरे द्वारा किसी का शोषण न हो। यदि इस भावना का व्यापक जागरण हो जाए तो नैतिक मूल्य पुनः प्रतिष्ठित हो जाएंगे। नैतिकता का सुंदर वातावरण स्वतः निर्मित हो जाएगा जरूरी है दृष्टिकोण में बदलाव कोई पूछ सकता है कि नैतिक दुर्भिक्ष की यह स्थिति क्यों बनी। मुझे ऐसा प्रतिभासित होता है कि आदमी के चिंतन की धारा गलत बन गई है। धर्म की पालना के क्षेत्र में, जहां उसको व्यक्तिवादी होना चाहिए, वहां वह समाजवादी बन गया है। सत्य, प्रामाणिकता, नैतिकता, ईमानदारी आदि धर्म के तत्त्व अपनाने के संदर्भ में समाज को प्रधानता देता है। वह इस आशय की बात कहता है कि सारा समाज सुधर जाए, समाज में इन तत्त्वों का व्यवहार शुरू हो जाए, फिर मैं सुधरूंगा, फिर मैं ये सब तत्त्व स्वीकार करूंगा। इसके विपरीत अर्थार्जन के क्षेत्र में, जहां कि उसे समाजवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, वह एकांत व्यक्तिवादी बन गया है। हर व्यक्ति अधिक-से-अधिक धन संगृहीत करना चाहता है। उस पर अपना स्वामित्व स्थापित करना चाहता है। नैतिक दुर्भिक्ष कैसे मिटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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