________________
बेशक तपस्या के द्वारा पूर्वसंचित कर्मों से छूटा जा सकता है, पर इस सिद्धांत का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। चूंकि दुष्प्रवृत्तियों के कारण होनेवाला कर्मबंधन तपस्या के द्वारा काटा जा सकता है, इसलिए दुष्प्रवृत्ति / पाप करने की छूट होनी चाहिए, इस प्रकर का चिंतन उसका दुरुपयोग है। ऐसा चिंतन पाप के प्रति आसक्ति का द्योतक होता है, जो कि कर्मबंधन को प्रगाढ़ बनाता है ।
आस्तिक लोगों के लिए तो अपना भविष्य संवारने की दृष्टि से विभिन्न प्रकार की वंचना /माया से बचते हुए सत्य, ऋजुता, सहजता आदि तत्त्व स्वीकार करना अपेक्षित है ही, साथ ही जो लोग पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, कर्म, परलोक आदि में विश्वास नहीं करते हैं, उनके लिए भी ये तत्त्व बहुत उपयोगी हैं, बल्कि वर्तमान जीवन की स्वस्थता के लिए अनिवार्य हैं।
कलकत्ता
७ जून १९५९
१९६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
ज्योति जले : मुक्ति मिले
www.jainelibrary.org