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ही है कि उनसे आवश्यकताओं की पूर्ति के लक्ष्य के विपरीत अपनी लालसाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और लिप्सा की पूर्ति की चेष्टा करना अनुचित है। ऐसी स्थिति में उनमें होनेवाली हिंसा को महारंभ की कोटि में ही गिनना होगा। हां, जितने रूप में वहां क्रूरता का अभाव है, उतने परिमाण में वह महारंभ नहीं है।
__ महारंभ की भित्ति महापरिग्रह है। किसे कहते हैं महापरिग्रह ? मात्र संग्रह महापरिग्रह नहीं है, अपितु आसक्तिपूर्ण संग्रह महापरिग्रह है। महारंभ और महापरिग्रह दोनों, जैसा कि मैंने प्रारंभ में ही बताया था, नरकायुष्य-बंधन के कारण हैं। हर व्यक्ति को इनसे बचने की दृष्टि से सतत जागरूक रहना चाहिए।
कलकत्ता
५ जून १९५९
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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